गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

ज़िंदगी बन न अब ज़हर जाए।
ये प्रदूषण कहीं न बढ़ जाए।।

कर मुहब्बत यहाँ सँभल कर ही।
उम्र अभी से सुनो सँवर जाए।।

प्यार पावन रहे यही सोचो।
मन इसी से सुनो निखर जाए।।

देख फौलाद – सा रहे जो भी।
आज मैदान – ए – समर जाए।।

ग़ैर से प्यार जो लगो करने।
ज़िंदगी अब न ये बिखर जाए।।

रख लिया है जिन्हें सँजो मन में।
याद उनकी नहीं बिसर जाए।।

देश के ही लिए मरे सैनिक।
बन सुहाना यही सफ़र जाए।।

देश की जय सदा सभी बोलें।
आज जग में सुनो उभर जाए।।

दुख समझ – सोच कर सदा बाँटो।
नित्य जीवन सुख से गुज़र जाए।।

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’

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