कविता

चल संविधान बचाते हैं

हम राजनीतिज्ञ हैं भाई
तरह तरह के स्वांग रचाते हैं,
जैसे ही चुनाव आया
लोगों का ध्यान भटकाते हैं,
जुमलों के इस दौर में हमने भी कह दिया
चल संविधान बचाते हैं,
संवैधानिक लोकतांत्रिक देश में
राज चलाने का हमें भी तजुर्बा है,
हमें फर्क नहीं पड़ता कोई दे रहा बद्दुआ है,
साफ सुथरा स्पष्ट शब्दों वाला संविधान है,
लेकिन मत भूलो हमारा भी छुपा विधान है,
पहले के लोग कहते करते रहे इसलिए
हम भी नैतिकता व सुचिता की बात करते हैं,
किसी को दिख नहीं पाता ऐसा प्रतिघात करते हैं,
हमने वतन की इतनी सेवा की है,
कि देश भर में गरीबी भुखमरी भर दी है,
हमारे सामने हमारे परिवार को छोड़
कोई नया नेता आए हमें मंजूर नहीं,
नजर मिलाये और मूछों पर
ताव दे जाये हमें मंजूर नहीं,
हमने भरे हैं उनके मन में कुछ जज्बा,
किये बैठे हैं उनके मन मस्तिष्क पर कब्जा,
हमीं पक्ष और हमीं विपक्ष हैं,
तभी तो कुछ वर्ग हमसे पस्त और त्रस्त हैं,
अपनी परंपरा हम छोड़ नहीं सकते,
धर्म-राजनीति का युति तोड़ नहीं सकते,
हमको पता है कुछ चालाक लोगों की
दिशा कैसे मोड़ा जा सकता है,
हमारी बात मान वो अपने ही पैरों पर
बिना दर्द कुल्हाड़ी चला सकता है,
किसी को पता भी नहीं चलता और
हम संविधान पर घात कर जाते हैं,
तो बंधुआ माफ कीजिएगा बंधुओं
चल संविधान बचाते हैं।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554