गीत/नवगीत

पान मसाला (कटाक्ष )

ऐसे ही नही , आसानी से हम
हम पान मसाला, बन पाते हैं।।

दुनिया भर की, हानिकारक चीजों
का बड़े चाव से, मिश्रण बनाते हैं
और बड़े बड़े, कलाकार जब
विज्ञापन का , तड़का लगाते हैं ।।

तब जाकर , बा मुश्किल हम
लोगों की, जुबान पर, छा पाते हैं
ऐसे ही नही, आसानी से हम
पान मसाला, बन पाते हैं।।

वर्षों वर्ष, की मेहनत, और तजुर्बा
लगातार , खपाना, पड़ता है
सरकारी नियम , और कानूनों को
‌सरेआम धता ,बताना पड़ता है।।

अधिकारियों की, मुठ्ठी गर्म कर
हम बड़ा ब्रांड,‌ बन जाते हैं
ऐसे ही नही, आसानी से हम
पान मसाला, बन पाते हैं ।।

कितने ही, जी के, जंजालों से
होकर जब, हम गुजरते हैं
लाखों -करोड़ों, के घर परिवार
तब जाकर, कहीं, उजड़ते हैं।।

वैधानिक, चेतावनी, चस्पा कर के
हम , जिम्मेदारी, पूरी निभाते हैं
ऐसे ही नही, आसानी से हम
पान मसाला, बन पाते हैं।।

एक ही, बार में, पूरी पुड़िया
जब लोग, सफाचट, कर जाते हैं
तब जाकर, कहीं हम , शिखर
पर आरूढ़, हो पाते हैं ।।

हमसे इतनी , वैमनस्यता क्यों
हम राजस्व, भी तो, खूब बढ़ाते हैं
ऐसे ही नही, आसानी से हम
पान मसाला, बन पाते हैं।।

सुबह-सवेरे, और, सबसे पहले
मेरी दुकानें, सज जाती हैं
भिन्न-भिन्न रंगों की,रंगीली पन्नियां
ग्राहकों को खूब, लुभाती हैं।।

अनायास वो खिंचे, चले आते हैं
कुछ ऐसा ज़हर, हम मिलाते हैं
ऐसे ही नही, आसानी से हम
पान मसाला, बन पाते हैं।।

गांव, शहर या, हों अट्टालिकाएं
बच्चे, बुजुर्ग हों, या हों, महिलाएं
सबके दिलों पर, है राज मेरा
भूल जाते हैं, तमाम ,मर्यादाएं ।।

बीच सड़क पर , फैलाते गन्दगी
और, थू थू करते, न शर्माते हैं
ऐसे ही नही, आसानी से हम
पान मसाला, बन पाते हैं।।

बड़े बड़े, कलाकार, जब
विज्ञापन का, तड़का लगाते हैं
तब जाकर, कहीं हम
स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर पाते हैं।

ऐसे ही नही, आसानी से हम
पान मसाला, बन पाते हैं।।

— नवल अग्रवाल

नवल किशोर अग्रवाल

इलाहाबाद बैंक से अवकाश प्राप्त पलावा, मुम्बई