कविता

हारा नहीं हूं

नया करने का जुनून जिंदा है भीतर,
अलग हैं मेरे सपनें, मैं नकारा नहीं हूं,
ये माना नसीबो का ये सारा खेला है,
हिम्मत हौसला है मुझमें, हारा नहीं हूं ।

जग की भेड़ चाल मुझे न रास आती,
नदी हूं मैं, नदी का किनारा नहीं हूं,
जानता हूं कोई पास तो कोई फेल है,
टूट कर बिखर जाऊं, वो सितारा नहीं हूं ।

श्रम की धौंकनी पर निरंतर ही तपता,
लक्ष्य भेदी हूं, सिरफिरा आवारा नहीं हूं,
मैं समझता हूं यह सारा जो है माजरा,
आलोचकों से डर, कभी घबराया नहीं हूं ।

जीतता एक दिन जंग वही जो दम रखता,
सृजनकार हूं, घूमता-फिरता बेचारा नहीं हूं,
भयंकर तूफानों में भी लड़खड़ाया न कभी,
सचेत हूं, इधर-उधर भटके वो बंजारा नहीं हूं ।

समय की धार को भली भांति जानता,
धैर्य रखता, कोई जादू का पिटारा नहीं हूं,
यकीन है मुझे मेरा ईश्वर मेरे साथ है सदा,
“आनंद” दे भरोसा, किस्मत का मारा नहीं हूं ।

— मोनिका डागा “आनंद”

मोनिका डागा 'आनंद'

चेन्नई, तमिलनाडु