कविता

बेवफ़ा!

दर्द-ए-बेवफ़ा, कुछ वफ़ा भी तो कीजिये,
मायूसियों को खुशनुमा तोहफ़ा दीजिये!

डगमगाते कदमों को बाँहों में थाम लीजिये,
उम्मीदों का जलवा-ए-चिराग जला दीजिये!

जिन्दगी का जाम घूंट-घूंट पी मजा लीजिये,
अश्क़ कहकहों में बदलना सीख लीजिये!

कारी घटाओं में छुपी जीवन-सुधा पी लीजिये,
गुलाबी अधरों को यौवन-हाला से मदमस्त कीजिये!

तपती दोपहरी में आग उगलते पलाश बिन लीजिये!
लाल-केशरी फूलों सी जिन्दगी को जी लीजिये!

झूठे वादें पे वादें कर न वफ़ा सें बेवफाई कीजिये,
कांटों पें मुस्कुरातें गुलों को यूँ न शर्मशार कीजिये!

उम्मीदों के टूटे पत्तों को न हवा में उड़ा दीजिये,
मलबे तले दबे-कुचले अरमानों को न दफ़न कीजिये!

वक़्त बदलता मिजाज़ बार-बार, जान लीजिये
बेवफ़ा हमराह! औरों के कर्ज तो अदा कीजिये!

खुशबु फूलों की ले चल दिए यूँ पराये से,
दर्द-ए-बेवफ़ा! बेमानी है आस, टूटें तारों से!

रात भर मरमरी काया कसमसाती रही,
चंपा-चमेली रेशमी सेज़ पर महकती रहीं!

सेज़ की सलवटें भीगती रहीं अश्कों से रात भर,
पत्थरदिल क्या जान पाएं मायने अँगारों से खेल कर!

दर्द का जाम छलकता रहा वक़्त का ठहराव भूल!
बेवफ़ा अक्स झिलमिलता रहा जख़्म-घाँव भूल!

शमा पिघलती रहीं रात भर पतंगे की याद में,
पतंगा ‘नौ दो ग्यारह हुआ’ नूर-ए-हुस्न की चाह में!

बेवफ़ा! फासले बहुत कम थे जिन्दगी-मौत में,
छटपटाता रहा दिल तेरी याद-ए-महफ़िल में!

— कुसुम अशोक सुराणा

कुसुम अशोक सुराणा

मुंबई महाराष्ट्र