मैं बावरा…
बीबी आई जब से घर में, हँसी गया मैं भूल
हिम्मत नहीं, किसी को भी दूँ गेंदे का फूल
शादी के लड्डू खाने दिल दीवाना था बहुत
शादी के बाद मैं भूला-बिसरा प्राणी अदभुत
कितने ख़्वाब सजाएँ आँगन की खटिया पर
अब शेष हैं टेड़ी-मेढ़ी रस्सियों में उलझी पीर
बीबी की उपस्थिति में मज़ाल हैं निकले बोल
मुँह बंद,सहूँ मुक्के की मार,कैसे खोलूँ पोल?
रात-रात,जाग-जाग कर की चाकरी बीबी की
दहेज़ में लाना भूल गई नौकरानी पीहर की
गृह-लक्ष्मी-वाहन उल्लूँ हँसू या रोऊ बार-बार
कमलपुष्प विराजिनी, रति छाई ह्रदय अपार
ढ़ोल-नगाड़े, बजी शहनाई करने मुझे आगाह
मैं बावरा,भोला-भाला सहूँ कैसे पत्नी-विरह?
— कुसुम अशोक सुराणा