गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मदहोश शाम है खुद को संभलने दो।
हाथ में जाम है दिल को मचलने दो।।

आ जाओ जरा महफिल में तुम हमारी।
जज्बातो को हद से ज्यादा गुजरने दो।।

कर लेना फिर इकरार हमसे इक बार।
शाम का आलम थोड़ा और ढलने दो।।

पीने पिलाने का दस्तूर है अब दोस्त।
लम्हा लम्हा जिन्दगी मे रंग भरने दो।।

फिसल जाये न ये हसीं वक्त रेत सा।
कैद कर लो इसे बेशक मचलने दो।।

तकते रहने की आदत जरा छोड़ दो।
चांद को उसके घर में तो संवरने दो।।

क्या मिलना है उदास होकर जीने में।
तब्बसुम को अपने चेहरे पे संवरने दो।।

रोज आती कयामत उम्र कम करने को।
बुलाओ मगर शौक से हौसला बढ़ने दो।।

— प्रीती श्रीवास्तव

प्रीती श्रीवास्तव

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