कविता

आदमी कितना बदल गया

आदमी कितना एहसान फरामोश हो गया
अपने ही नशे में मदहोश हो गया
मिलते हुए भी ज़िन्दगी में सब कुछ
दिल से क्यों खानाबदोश हो गया

तिरछी नज़रों से ताकता है सब को
सामने से नज़र क्यों मिलाता नहीं
दिल में दबाकर रखता है सारी बातें
पूछने पर भी क्यों बताता नहीं

भेद रखता है सभी के
बाहर से क्यों बनता है अनजान
घर बनाना अब भूल गया
बनाये जा रहा नए नए मकान

करने लगता है नेकी की बातें
किसी के साथ जब जाता है शमशान
लौटने पर फिर सब कुछ है भूल जाता
खोल देता है फिर बेईमानी और पैसे की दुकान

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र