मुक्तक/दोहा

दोहे – पत्थर की महिमा

रहना पत्थर बन नहीं, बन जाना तुम मोम।
मानवता को धारकर, पुलकित कर हर रोम।।

पत्थर दिल होते जटिल, खो देते हैं भाव।
उनमें बचता ही नहीं, मानवता प्रति ताव।।

पत्थर की तासीर है, रहना नित्य कठोर।
करुणा बिन मौसम सदा, हो जाता घनघोर।।

पत्थर जब सिर पर पड़े, बहने लगता ख़ून।
दर्द बढ़ाता नित्य ही, पीड़ा देता दून।।

पर पत्थर हो राह में, लतियाते सब रोज़।
पत्थर की अवमानना, का उपाय लो खोज।।

पर पत्थर पर छैनियों, के होते हैं वार।
बन प्रतिमा वह पूज्य हो, फैलाता उजियार।।

सीमा पर प्रहरी बनो, पत्थर बनकर आज।
करो शहादत शान से, हर उर पर हो राज।।

पत्थर से बनते भवन, योगदान का मान।
पत्थर से बनते किले, रखती चोखी आन।।

—-प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]

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