दोहे- शीत
1.
शीत ऋतु प्यारी लगे, भाए गुनगुनी धूप,
दिवस लगते प्रेम पगे, इसका रूप अनूप।
2.
स्वेटर कंबल कोट का, मोह न छोड़ा जाय,
मूंगफली का भोग खा, जाकर सोया जाय।
3.
ऊन सलाइयां ले बैठीं, मिलीं सखियां चार,
चलते सरपट हाथ तो, होता बेड़ा पार।
— लीला तिवानी
1.
शीत ऋतु प्यारी लगे, भाए गुनगुनी धूप,
दिवस लगते प्रेम पगे, इसका रूप अनूप।
2.
स्वेटर कंबल कोट का, मोह न छोड़ा जाय,
मूंगफली का भोग खा, जाकर सोया जाय।
3.
ऊन सलाइयां ले बैठीं, मिलीं सखियां चार,
चलते सरपट हाथ तो, होता बेड़ा पार।
— लीला तिवानी