मुक्तक/दोहा

दोहे- शीत

1.
शीत ऋतु प्यारी लगे, भाए गुनगुनी धूप,
दिवस लगते प्रेम पगे, इसका रूप अनूप।
2.
स्वेटर कंबल कोट का, मोह न छोड़ा जाय,
मूंगफली का भोग खा, जाकर सोया जाय।
3.
ऊन सलाइयां ले बैठीं, मिलीं सखियां चार,
चलते सरपट हाथ तो, होता बेड़ा पार।

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

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