कविता

कर्म सिद्धान्त

वेद पुराणों की प्रखर वाणी,
मत बन मानव तू अभिमानी,
यदि ये बात तूने जो न मानी,
भुगतेगा, न चलेगी मनमानी ।

जन्म मरण का ही है ये रेला,
पास बचेगा नहीं एक ढेला,
जो सुख दुख तुमने है झेला,
सब तेरे कर्मों का है खेला ।

किया कर्म कल तुमने जैसा,
पाओगे कल फल तुम वैसा,
छूट जाएगा धन दौलत पैसा,
है प्रबल कर्म सिद्धान्त ऐसा ।

कर्म यदि नेक तुम करते हो,
सत्य वचन कथन करते हो,
जीवों पर दया भाव रखते हो,
भाग्य लिखा बदल सकते हो ।

मधुर सात्विक वचन बोलो,
प्रेम सरिता में नित डोलो,
मोह माया के बंधन खोलो,
भीतर “आनंद” अमृत घोलो ।

— मोनिका डागा “आनंद”

मोनिका डागा 'आनंद'

चेन्नई, तमिलनाडु