कविता

जाडे़ की शुरूआत

बारिश ने करवट बदली शीतलहर छाई,
निकाल ली है अब स्वेटर, कम्बल, रजाई,
कंपकंपाती जाड़े की शुरुआत यहीं हुई,
मद्धिम-मद्धिम ठिठुरन की दस्तक हुई ।

किरणों का तीव्रतम ताप कम होने लगा,
तन को सूरज का तेज बडा़ मोहने लगा,
दिन हो गए थोड़े छोटे और रातें हुई बड़ी,
ज्यादा भूख लगने की शुरू हुई गड़बड़ी ।

आहा ! ठंडी हवा और चाय की प्याली,
आ गई ऋतु गाजर मेवों के हलवे वाली,
अभी ही है बेहतरीन स्वाद सूखे मेवों का,
काजू, बादाम, अंजीर, अखरोट, पिस्तों का ।

कसरत, सुबह की सैर से विटामिन डी बनाओ,
सर्दियों में चुस्त-दुरुस्त और तंदरुस्त हो जाओ,
मक्खन लगा खाओ पराठे, रोटियां और पूडी,
चाव से अरोगो केशरिया दूध मोटीमलाई रबड़ी ।

गरमा-गरम भोजन से ही मिलती “आनंद”तृप्ति,
हरी-भरी सब्जियों से मिलती है शारीरिक शक्ति,
ठंडक भगाएं शोभा सूठ के अतिपोष्टिक लड्डू,
तंदुरुस्ती जगाएं गोंद, मेथी, खोपरे, गुड़ के लड्डू ।

— मोनिका डागा “आनंद”

मोनिका डागा 'आनंद'

चेन्नई, तमिलनाडु