कविता

दुबक रहे माँद पर

आविष्कार बहुतायत हो रहे
बम बारूद राफेल के तुख्म बो रहे
खोज रहे नित्य नए आयाम
लडाकू विमान सरिस घातक संग्राम
धातुओं के बन रहे नवीन उपकरण
भयावह रुप को करने भरण
समूचे विश्व पहुँच रहे मंगल-चाँद पर
और हम दुबक रहे माँद पर

जैसे कृषि उपकरण को ही देख लो
फ्रीज ए.सी. गाड़ियों को सरेख लो
संगणक ने कर्म का स्वरूप बदल दिया
परमाणु परीक्षणों ने हलचल किया
विश्व बढ़ रहे परचम लहराने को
नित नए आविष्कार ढूँढ रहे दबाने को
नई-नई तकनीक लोग सोंच रहे
पाषाण युग में घूसकर हम भारतीय
मस्जिद में मन्दिर खोज रहे।।

मिसाइल गढ़ने दूसरों पर आश्रित है
बुलेट ट्रेन जापान ने की स्थगित है
शिक्षा चिकित्सा में फिसड्डी है
तार्किक सोंच विश्लेषण से की कट्टी है
विश्व गुरु का नाम बस अलाप रहे
यत्न के बजाय कर जाप रहे
नवीन तथ्यो को तज प्राचीन में कूद रहे
जिनका अस्तित्व नही उसपर जूझ रहे।।

— चन्द्रकांत खुंटे ‘क्रांति’

चन्द्रकांत खुंटे 'क्रांति'

जांजगीर-चाम्पा (छत्तीसगढ़)