माली
कानन-कानन बिखरें विवश सुमन,
माली को तरसे श्यामल सजल नयन
सूर्योदय हो या अस्ताचल की ओर गमन,
ममतामई स्पर्श को वंचित वन-उपवन
वृक्ष-वल्लरियों का व्योम-विलाप-वर्जना,
ऋतु परिवर्तन में जीवन-संघर्ष-अर्चना
खाद-पानी द्वारा जीवन-सिंचन-कल्पना,
व्यर्थ की अभिलाषा, आक्रोश-गर्जना
अन्न-पानी हेतु देश-विदेश भटके ख़ग गण,
सरवर तट प्रवासी पक्षियों का आवागमन
जलाशय निकट ही प्रस्तावित स्नेहमिलन,
संयुक्त परिवार का मन मोहक सम्मेलन
परिवार-श्रेष्ठी करे रिद्धि-सिद्धि संवर्धन,
माली की भाँति पाल-पोस करे श्री वर्धन
कर्मयोगी की जड़े गहरी करें सही सृजन,
त्याग, बलिदान महत्ता समझाएँ श्रेष्ठीजन
उपवन का माली जाने बुजुर्गों का मोल,
वर्षा-ताप-शीत सहने का मन्त्र दे अनमोल
अनुभव के बोल कहे तोल-मोल के बोल
धैर्य-एकता-साहस कहे अन्तस पट खोल
— कुसुम अशोक सुराणा