सर्दी की आहटें
आज़ इस खेल में,
हरेक पड़ाव पर एक गुफ्तगू हो रहा है,
आखिर ये क्यों,
सर्दी की आहटें दिल को,
काफी कसकर झकझोर रहा है।
अमीरों को कुछ समझ में नहीं आता है,
वो सब तो,
इस आहटों पर खुशियां भरपूर मनाते हैं,
इस वक्त का,
बड़ी उतावले हो,
आने की होड़ में शामिल हो जाते हैं।
ग़रीबी और मजबूर लोगों को,
यह कम्बक्त सर्दी,
तकलीफें बेपनाह देती है,
घर आंगन की तकलीफें बेहद मुसीबतों से,
भर कर तकलीफें बेहिसाब करने में,
सबसे पहले खडी हो जाती है।
रातों में सुनसान सड़कों की,
रंगरेलियां खत्म हो जाती है।
सुनापन में ही,
शहरी अनजान सड़कों में बस रेंगती नज़र आतीं हैं।
किस्मत से मिली ज़िन्दगी में,
इसके काफी फसाने हैं यहां।
मजलूमों में खुशियां नहीं दिखता है,
बस रोने और हंसने के बीच,
रंगरेलियां की कोशिश,
बस सपने संजोने से ही ,
दिखने लगते हैं बस यहां।
— डॉ. अशोक, पटना