गीत/नवगीत

पहचान

जितनी सरल जीवन चर्या बनाएंगे
उतना प्रकृति को, हम जान पाएंगे
जितना ही मैं मैं, को दूर भगाएंगे
उतना प्रभु के, करीब हो जाएंगे

सत्संग की महिमा,तो अपरंपार है
सभी ग्रन्थों का बस, यही सार है
अच्छे गुरु का, सानिध्य मिलेगा
ख़ुद को तभी,जान पहचान पाएंगे

दान-दक्षिणा भले, करें या न करें
देश -विदेश,का भ्रमण, करें न करें
दीन की मदद को,जो हाथ बढ़ाया
खुद का जीवन,आसान बनाएंगे।

अहम और दिखावा,बड़े दुश्मन हैं
बस कहने भर,को हीअपनापन है
इनसे अगर, मिल गया, छुटकारा
खुद से साक्षात्कार, कर जाएंगे ।।

मन का तो,काम है,भटकाते रहना
जल्दी कुछ, अच्छा, न करने देना
इसके कहने में, जो गर आएंगे
फिर तो कहीं के भी, न रह जाएंगे

दूसरों में कमियां, हम ढूंढते फिरते
खुद का कभी, न परीक्षण करते
अपनी खामियां यदि,हम छुपाएंगे
प्रगति के मार्ग, सब बंद हो जाएंगे

सुख-समृद्धि तो, हासिल कर ली
धन-दौलत से, झोलियां भर ली
हवस से मुक्ति, ना पा सके यदि
शान्ति को फिर,तरसते रह जाएंगे

जिस काम, के लिए,धरा पर आए
अब उसी, से क्यों, आंखें चुराएं
खुद को अभी तक,पहचान नपाए
फिर कैसे प्रभु से,आस लगाएंगे।

खुद को अभी तक,पहचान नपाए
फिर कैसे प्रभु से ,आस लगाएंगे।

— नवल अग्रवाल

नवल किशोर अग्रवाल

इलाहाबाद बैंक से अवकाश प्राप्त पलावा, मुम्बई