विचारों के चौराहे पर
चलता रहेगा यह द्वंव्द
इस दुनिया में कब तक ?
कहीं भूख है तो
कहीं अपच व अजीर्ण
कहीं मान – सम्मान है तो
कहीं अपमान की पीड़ा
कभी स्वस्थता है जीव का तो
कभी अस्वस्थता की परेशानी
कहीं ध्वस्त है तो कहीं निर्माण
एक ओर जीत का उल्लास
दूसरी ओर हार का झुकाव
कहीं तेज गति है तो कहीं मंद
ऊॅंच – नीच, अमीर – गरीब
जीव – निर्जीव, अंधेरा – उजाला
हिंसा – अहिंसा, न्याय – अन्याय
धर्म – अधर्म, हर्ष – विषाद
सही – गलत, सच – झूठ
द्वेष – प्रेम, स्वीकार – तिरस्कार,
इतने हैं दुनिया में
एक दूसरे से बढ़कर
परस्पर ये भिन्नताएं चलती हैं
चलती रहती हैं .. चलती रहती हैं
कहीं चेतना है तो कहीं अचेतन
एक ओर कल्पना के आलोक में
भटकते हैं जनता इधर – उधर
दूसरी ओर यथार्थ का
अपना मुखड़ा खुलने का प्रयास
कुछ लोग दौड़ते हैं
और कुछ दौड़नेवालों का
चेहरा देखने में लग गये हैं
वीरों का साहस, कायरों का डर
ये एक दूसरे से बंटेगा कैसे
सुख भोग का आराम छोड़
धूप में अपना पसीना
कौन बहाएगा इच्छा से
अभावों को पारकर श्रम जीवी
सुख छाया में कब आराम लेगा
द्वैत – अद्वैत – द्वैताद्वैत – विशिष्टाद्वैत
किसी का आरंभ किसी की समाप्ति
शून्य से उलझन की ओर
उलझनों को पारकर शून्य की ओर
कभी शांति से अशांति की ओर
अशांति से शांति की ओर
अठारह भागों में शरीर का अध्ययन
पंच भूतों का आध्यात्मिक विश्लेषण
सप्त लोकों का काल्पनिक चिंतन
देवी – देवता, स्वर्ग – नरक,
जन्म – पुनर्जन्म धारणाएं हैं
अनेक हैं समय – समय पर
जोड़ – तोड़ – मरोड़ – मन के
गतिमान हैं कुछ लोक हित में तो
धीरे से स्वार्थवश हो विकार –
रूढ़ – मूढ़ – मंद मति का,
जन्म से लेकर चलती है
विभिन्नताओं की यह यात्रा
सबको पारकर
मृत्यु के मुंह में अंत होती है ।