गीतिका – भोर
भोर सुनहरी नित आती है,
नव राहों को दे जाती है।
सूरज की किरणों के सँग में,
सपन सुहाने बरसाती है।
जीवन बढ़ता जाये आगे,
गति-मति,सम्बल दे जाती है।।
कहती आगे बढ़ना तुमको,
श्रम का गीत सुना जाती है।
बढ़े चलो तुम प्रांत- प्रांतर ,
नित चलना सिखला जाती है।
नहीं मौत से डरना तुमको,
साहस गीत सुना जाती है।
चिड़ियों की कलरव के सँग में,
नव करना सिखला जाती है।
विश्वासों का दामन भरकर,
शुभ वरना समझा जाती है।।
नियमितता से जीवन रोशन,
यह ही पाठ पढ़ा जाती है।
संघर्षों का उपवन पालो,
तम पर वार दिखा जाती है।
रीति-नीति, करुणा से जीना,
शुभ का पाठ पढ़ा जाती है।
अच्छाई का स्वागत करके,
उपहारों को ले आती है।
कितने भी काँटे राहों में,
पर वो फूल खिला जाती है।।
— प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे