गीत/नवगीत

जीवन अब बाजार में बिकता

संबन्धों पर स्वार्थ है हावी, रिश्तों में ना मेल है।

जीवन अब बाजार में बिकता, संबन्ध बने यहाँ खेल है।।

पैसा सबका बाप बन गया।

पैसे बिन प्रिय, ताप बन गया।

धन की खातिर बिकी किशोरी,

खरीददार दुल्हा, आप बन गया।

धनवानों को फंसा के शादी, दहेज केस कर जेल है।

जीवन अब बाजार में बिकता, संबन्ध बने यहाँ खेल है।।

हृदय पर है, बुद्धि हावी।

धन ही है रिश्तों की चाबी।

प्रेम खुले बाजार में बिकता,

धन बिन पत्नी भी बर्बादी।

धन बिन पटरी से उतरे रिश्ते, उलटे जीवन रेल है।

जीवन अब बाजार में बिकता, संबन्ध बने यहाँ खेल है।।

भावुक हैं, हमें मूर्ख है माना।

स्वार्थ का गाया नहीं है गाना।

हम तो समझें, प्रेम की भाषा,

कपट का लेकिन हुआ फंसाना।

दुनियादारी नहीं है सीखी, राष्ट्रप्रेमी हुआ फेल है।

जीवन अब बाजार में बिकता, संबन्ध बने यहाँ खेल है।।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)

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