कविता

निखार

संगठित रहने वाला कौम
बहुत जल्द निखर जाता है,
मगर खुद ही लड़ने वाला
खुद ही बिखर जाता है,
क्या कभी सोचा है कि
हर तबके की सत्ता में भागीदारी
उसके रहन सहन,
उसके प्रति औरों के व्यवहार में
अत्यधिक निखार लाता है,
दमदारों के लिए सामाजिक स्वीकार लाता है,
क्यों,क्योंकि हर चीज का मास्टर चाबी
केवल व केवल सत्ता है,
वरना यहां कुछ ऐसे लोग भी बैठे हैं
जिनके लिए कुछ कौमें
बार बार फेंटा जाने वाला ताश का पत्ता है,
सिर्फ चेहरे के निखार पर मत जाना,
अधिकांश खूबसूरत लोगों का
होता है कहीं और निशाना,
क्या कोई कह सकता है कि
तन के उजलों का मन भी उजला होता है,
बोला कुछ और जाता है व
मस्तिष्क में कोई अलग मसला होता है,
जिन्होंने त्याग दिया भीतर की हर बुराई,
जग को राह दिखाते ज्योति उसने जलाई,
पश्चिमी देश उन्नति की राह पर क्यों अग्रसर हैं,
वतन की उत्तरोत्तर प्रगति की सोच का असर है,
तो देश की प्रगति का आधार,
देश में हर स्तर पर निखार।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554

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