बच्चों की फ़िक्र
यही एक सन्देश है,
प्रश्न चिन्ह नहीं है,
बल्कि उम्मीद की कोशिश है,
जिसकी वजह से ही हिम्मत जुटाई जाती है,
इस कारण से हम कह सकते हैं,
यही उपयुक्त उपदेश है।
पिता की चर्चा करते हैं लोग,
कारण से इस विषय पर,
बोलते हैं सब लोग।
पिता की खुशियां और सुकून में,
बच्चों का हक़ मिल जाता है,
यही वजह है कि सब लोग अक्सर कहते हैं,
पिता की दुआओं से ही,
बच्चों का परवरिश हमेशा,
पूरी दुनिया में किया,
सात्विक विचार से ही जाता है।
बच्चों को पढ़ाने लिखाने और उमंग और उत्साह से भरपूर कराने में,
पिता की फ़िक्र जायज़ है,
इस जहां में खुशियां भरपूर मिले,
इस कारण से,
यही बन जाती आवाज है।
बच्चों की वास्तविक दुनिया में,
पिता की उपस्थिति ही सम्राज्य है।
ईश्वर से प्रार्थना करते हैं लोग,
कहते इसे रामराज्य है।
दुनिया की हरेक कमीयों को,
पिता ही पूरी कर सकता है।
इस रिश्ते को अटूट विश्वास ने कहा है कि,
इसकी अटूट सोहबत में,
सब कुछ हासिल होना,
हमेशा सम्भव दिखता है।
— डॉ. अशोक, पटना