कविता

मेरी साँसों में तुम

बसूँ साँसों में तेरी सदा राधा जैसी,
हरे तू विघ्न मेरा दीवानी मीरा सम,
है ये चाहत की रुक्मणी ही बनूँ तेरी,
नहीं चाहूँ कभी मैं वर छलिया मोहन सम।

मेरे नागर तुझ पर ही सब है वार दिया,
मोहन तुमने तो कितनो को है तार दिया,
माना धरती सम गोविन्द मुझ में धैर्य बड़ा
और काया से तुमने मुझको इक नार किया ।

तेरी साँसों में कोई और बसे कैसे सहूँ,
तू किसी और को बाँहों में कसे कैसे सहूँ,
इससे बेहतर है कि बन जाऊँ जोगन मीरा,
और दुनिया की गरल यूँ सदा पीती रहूँ।

— सविता सिंह मीरा

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - [email protected]