पुस्तक समीक्षा

रमला बहू : भारतीय नारी की अश्रु गाथा

यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवताः I

    यत्रैतास्तु न पूज्यंते सर्वास्तत्राफला:क्रियाः II

अर्थात जहाँ नारियों का सम्मान होता है वहाँ देवतागण प्रसन्न रहते हैं I इसके विपरीत जहाँ उनका तिरस्कार किया जाता है वहाँ देवकृपा नहीं होती और वहाँ किए गए कर्म सफल नहीं होते I हम भारतवासी सदियों से यह श्लोक सुनते आ रहे हैं, लेकिन यहाँ की महिलाएं प्रताड़ित और उपेक्षित हैं I भारत में महिलाओं पर तरह-तरह के अत्याचार होते हैं I कभी दहेज़ के कारण लड़कियों को प्रताड़ित किया जाता है तो कभी दहेज न दे पाने के कारण अपने पिता की उम्र के पुरुष से उनका विवाह कर दिया जाता है I बीच सड़क पर महिलाओं के साथ छेड़खानी, बलात्कार और हिंसा तो आम बात है I मर्दों की पशुता और जंगलीपन के बीच महिलाएं असुरक्षित हैं I प्रतिदिन घटित हो रही घटनाएँ प्रमाणित करती हैं कि आधुनिकता के दौर में भी महिलाओं की दशा में अधिक बदलाव नहीं आया है I आदमी पहले की अपेक्षा अधिक जंगली, हिंसक, आततायी और महिलाओं के प्रति संवेदनहीन हो गया है I सचमुच भारत की महिलाएं प्रणम्य हैं जिन्होंने हमेशा अपनी लक्ष्मण रेखा का सम्मान किया है I वे सदा मर्यादा की सीमा में रहती हैं, परंतु पुरुषों का बर्बर पुरुषत्व उन्हें नोच डालने को तत्पर रहता है I भारतीय नारी की व्यथा-कथा और अश्रु गाथा अनंत है I परंपरा, लोकलाज, मर्यादा, प्रतिष्ठा आदि के नाम पर भारतीय नारियाँ घुट-घुटकर जीवन काट देती हैं, लेकिन विद्रोह नहीं करती हैं I असंख्य महिलाएं मर्यादा की बलिवेदी पर अपने जीवन को होम कर देती हैं I भारतीय महिलाओं के त्याग, बलिदान, समर्पण और उत्सर्ग की असंख्य कथाएँ हैं I इसी भावभूमि पर वरिष्ठ कथाकार रूपसिंह चंदेल का उपन्यास ‘रमला बहू’ आधारित है I यह उपन्यास भारतीय नारी की अश्रु कथा है I इसमें भारतीय नारी की मनोदशा, उसकी दयनीयता और शोषण के कुचक्र को रेखांकित किया गया है I

   इस उपन्यास में नारी मनोविज्ञान का प्रभावशाली चित्रण किया गया है I उपन्यासकार ने इस कृति में मनुष्य की बेचारगी, राग-विराग, आशा-आकांक्षा इत्यादि मानवोचित अच्छाइयों व बुराइयों का प्रभावशाली चित्रण किया है I उपन्यास के विभिन्न पात्रों के माध्यम से सामाजिक विद्रूपताओं और विडम्बनाओं पर निर्मम प्रहार किया गया है I उपन्यासकार ने मानव–मन के एकांत में झाँककर भावनाओं के आरोह–अवरोह व जद्दोजहद को वाणी दी है I इस उपन्यास में मध्यवर्ग के आडंबर, शोषण की प्रवृत्ति और झूठ पर कशाघात किया गया है I ‘रमला बहू’ में कानपुर जनपद की मिट्टी की सोंधी महक और लोकजीवन की खुशबू है I उपन्यासकार ने कानपुर की भाषा, वचन भंगिमा, मुहावरे, लोकगीत और शब्दावली का भरपूर उपयोग किया है जिसके कारण उपन्यास में स्थानीय रंग प्रभावशाली तरीके से उभरकर सामने आ गया है I यह उपन्यास सामाजिक कुरीतियों पर तीखा प्रहार करता है और आधुनिक जीवन के संत्रास व व्यवस्थागत सड़ांध को रेखांकित करता है I

    रमला, छिद्दा सिंह, जंगली सिंह, मदन, झुमकी, शांता आदि उपन्यास के पात्र मिलकर एक ऐसा संसार निर्मित करते हैं जिससे हम सबका प्रतिदिन साक्षात्कार होता है I इसलिए उपन्यास का कथानक अधिक विश्वसनीय प्रतीत होता है I शांता और झुमकी दोनों विधवा हैं, जवान हैं और यौन सुख से वंचित हैं I जब एक बार इनकी मर्यादा के बाँध टूटते हैं तो उनका संयम तिरोहित हो जाता है और वे काम-सुख में डूब जाती हैं, लेकिन दोनों का अंत दुखद होता है I रमला भारतीय नारी की प्रतिमूर्ति है जो कभी मर्यादा का परित्याग नहीं करती I उसके जीवन में बहुत झंझावत आते हैं, परंतु वह संयमित बनी रहती है I उपन्यास के आरंभ में रमला का चरित्र एक दयनीय, विवश और अबला नारी के रूप में चित्रित हुआ है, लेकिन धीरे-धीरे उसका चरित्र परिपक्व होता है I उपन्यास के अंत में उसका चरित्र एक सशक्त, संवेदनशील, मर्यादित और आदर्श भारतीय नारी के रूप में प्रस्फुटित होता है I हमारे समाज में जंगली सिंह जैसे परपीड़क, दुष्ट और संवेदनहीन लोगों की कमी नहीं है जो हमेशा गाँव की शांति में खलल डालने की कोशिश करते रहते हैं I बेमेल विवाह, विधवा पुनर्वास, अंतर्जातीय विवाह, स्त्री शिक्षा आदि सामाजिक समस्याओं की भावभूमि पर केंद्रित उपन्यास ‘रमला बहू’ में अद्भुत पठनीयता है जिसके कारण पाठक अंत तक बंधे रहते हैं I यह भारतीय नारी की व्यथा का मार्मिक दस्तावेज है I

   आज भी भारतीय नारियों के जीवन में अधिक बदलाव नहीं आया है I आज भी उसके लिए ‘आँचल में है दूध और आँखों में पानी’ जैसी स्थिति बरकरार है I उपन्यास में नारी जीवन की त्रासदी को प्रभावशाली ढंग से चित्रित किया गया है I नारी मनोविज्ञान का ऐसा अद्भुत चित्रण उपन्यासकार के गहन ज्ञान और सतत अध्ययन का साक्षी है I यह स्त्री मन की पीड़ा को अभिव्यक्त करनेवाला एक उत्कृष्ट उपन्यास है I उपन्यास की नायिका रमला कठिन परिस्थितियों में भी नहीं टूटती है और अपने हौसले से मुसीबतों के पर्वत से टकराती रहती है I दूसरी ओर झुमकी मुसीबतों से टूटकर बिखर जाती है और जंगली सिंह के सम्मुख समर्पण कर देती है I हम चाहे नारी सशक्तिकरण की कितनी भी बातें कर लें, परंतु आज भी भारतीय नारी उत्पीडित, उपेक्षित और प्रताड़ित है I अत्याधुनिक युग में भी कदम-कदम पर भारतीय नारी को अग्नि परीक्षा देनी पड़ती है I कोई पुरुष जब चाहे स्त्री को चरित्रहीनता के कठघरे में खड़ा कर देता है I बिना किसी अपराध के महिलाएं सजा काटती रहती हैं I उन्हें उस अपराध के लिए दंडित किया जाता है जो अपराध उन्होंने किया ही नहीं I किसी भी लड़की के बारे में अफवाह फैलाकर उसे बदनाम कर देना आम चलन है I महिलाएं चुपचाप नींव की ईंट बन जाती हैं, लेकिन उनकी उपलब्धियों के खाते में शून्य आता है I प्रत्येक लड़की की तरह रमला भी सपने देखती है कि उसे पति के रूप में कोई राजकुमार मिलेगा, लेकिन जब उसे पता चलता है कि उसका भावी पति आयु में उससे दूने से भी अधिक है तो उसे गहरा आघात लगता है-

   “पति के रूप में यदि हमउम्र न भी मिले तो चार-पाँच वर्ष का अंतर भी अपवाद नहीं माना जाता I लेकिन रमला के पति और उसके मध्य आयु का इतना अंतर…….कैसे न ह्रदय चीत्कार करता रमला का !” रमला का छिद्दा सिंह से विवाह हो गया I इस विवाह से रमला और छिद्दा सिंह दोनों दुखी थे I उम्र में छिद्दा सिंह अपनी पत्नी से 30-35 साल बड़े थे, साथ ही नपुंसक भी I वे अपनी जवान पत्नी रमला को यौन सुख नहीं दे सकते थे I इसलिए पश्चाताप की अग्नि में जलते रहते थे I रमला को अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा था I वह भाग्य के सामने स्वयं को विवश पाती थी और बेमेल विवाह को अपनी नियति मान चुकी थी I छिद्दा सिंह की बहन शांता एक दबंग महिला थी जिसका एकमात्र उद्देश्य छिद्दा सिंह की वंशबेल को आगे बढ़ाना था I शांता की दबंगई के सामने छिद्दा सिंह लाचार हो गए और न चाहते हुए भी उन्हें दूसरी शादी करनी पड़ी I धीरे-धीरे रमला के साथ-साथ उनकी बहन शांता भी समझ गई कि छिद्दा सिंह नपुंसक हैं तथा अपने वंश को आगे नहीं बढ़ा सकते I शांता छिद्दा सिंह के वंश को आगे बढ़ाने के लिए किसी हद तक जाने को तैयार थी I उसने बिरसा और रमला के बीच दैहिक संबंध स्थापित कराने का प्रयास किया ताकि छिद्दा सिंह के वंश को आगे बढाया जा सके, लेकिन रमला की चारित्रिक दृढ़ता के सामने शांता की योजना सफल नहीं हो सकी I सुहागरात को रमला को गहरा आघात लगा जब छिद्दा सिंह खर्राटे लेने लगे I रमला अपने दुर्भाग्य पर चीत्कार करना चाहती थी, लेकिन लोकलाज के कारण कर नहीं सकती थी I उपन्यासकार ने रमला की घनीभूत पीड़ा का बहुत मर्मस्पर्शी चित्र खींचा है-

‘उसका मन करता रहा कि वह चीत्कार करे………सो रही दुनिया को जगा दे……..सामने पड़ने पर भाई से पूछे कि क्या ब्याह इतना ही आवश्यक था……….क्या वह बिना ब्याही नहीं रह सकती थी I किस जीवन की शत्रुता का बदला लिया भाई ने I लेकिन वह चीख नहीं सकी I एक विवश नारी……I’ इन पंक्तियों में रमला के माध्यम से असंख्य भारतीय नारियों की व्यथा है I 

   कथात्मक प्रवाह और जिज्ञासा भाव इस उपन्यास का गुणसूत्र है I ‘रमला बहू’ की कथावस्तु आम आदमी के दैनिक जीवन से जुडी हुई है I जिन समस्याओं और कठिनाइयों से अपने दैनिक जीवन में भारतीय महिलाएं जूझती रहती हैं उन स्थितियों को उपन्यास में जीवंत कर दिया गया है I उपन्यास में रमला, शांता, झुमकी आदि महिलाओं की व्यथा के बहाने सम्पूर्ण नारी जाति की व्यथा को अभिव्यक्त किया गया है I इसमें सत्ता संघर्ष, छल-प्रपंच से चुनाव जीतने की कलाबाजी, भारतीय राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार आदि को रेखांकित किया गया है I उपन्यास में सामाजिक विद्रूपताओं और विसंगतियों पर निर्मम प्रहार किया गया है I छिद्दा सिंह निर्मल हृदय के भोले-भाले और संवेदनशील व्यक्ति थे I वे झगडा-झंझट, वाद-विवाद और ईर्ष्या-द्वेष से दूर रहते थे I वे सभी के बारे में सोचते थे और किसी को दुःख नहीं पहुँचाना चाहते थे I जब शांता ने उन पर विवाह करने के लिए दबाव डाला तो उनके मन में उथल-पुथल मच रहा था I वे अपनी बहन शांता के बारे में सोचने लगे-

   “इस देश की लाखों विधवाओं की भांति उपेक्षा और कष्ट भोगने के लिए जन्मी एक अभिशप्त नारी……..और नारी होकर भी वह रमला के साथ मेरा विवाह करवाना चाहती है I क्यों…….इसमें शांता को क्या लाभ ! केवल इसीलिए न कि वह चाहती है कि मेरा वंश पनपे……..मेरे बाद मेरे वंश का नाम लेनेवाला कोई रहे…….वंशबेल चढ़ती रहे I मेरे बाद मेरी संतान……..मेरी संतान के बाद उसकी संतान……I’

   उपन्यास में जाति व्यवस्था के खोखलेपन पर चोट की गई है तथा अंतर्जातीय विवाह की वकालत की गई है I समाज के प्रतिष्ठित लोगों द्वारा रमला और मदन के विवाह का अनुमोदन करना अंतर्जातीय विवाह का उदाहरण और प्रगतिशील कदम है I छिद्दा सिंह रमला का विवाह कराकर समाज के सामने एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करते हैं I कथोपकथन के द्वारा उपन्यास के प्रमुख पात्रों के मन में चल रहे ऊहापोह और अंतःसंघर्ष को आकार दिया गया है I ‘रमला बहू’ में कथोपकथन के द्वारा उपन्यास के विभिन्न पात्रों के मनोभावों, मनोविकारों, छटपटाहट, आत्मसंघर्ष को वाणी दी गई है I इस उपन्यास में संवादों का कुशलता के साथ प्रयोग किया गया है I जो बात उपन्यासकार सीधे नहीं कह सकता है वह पात्रों के माध्यम से कहलवा देना इस उपन्यास का वैशिष्ट्य है I यह शैली ही रूपसिंह चंदेल के उपन्यासों को विशिष्ट बनाती है I मदन और रमला के बीच का संवाद दोनों की मनःस्थितियों को प्रकट करता है I मदन एक बुद्धिमान, प्रगतिशील, परिपक्व और सामाजिक मूल्यों का सम्मान करनेवाला नवयुवक है I रमला रूपवती के साथ-साथ बुद्धिमती भी है I कथोपकथन का एक उदाहरण द्रष्टव्य है-

मदन बोला, “चलकर कहीं बैठें ?”

“मैं आपके साथ नहीं जाती I”

“नाराज हैं ?”

“मैं क्यों होने लगी नाराज-होती ही कौन हूँ तुम्हारी…….जो नाराज होउंगी I”

“यह भी बताना पड़ेगा I”

“नाटक मत करो………यदि ऐसा ही था तो लाजो से बुलवाया था……..आए क्यों नहीं थे I”

“बस इसीलिए……..चलकर कहीं बैठो तब बताऊंगा I”

“नहीं जाना मुझे……..तुम हाल-खबर लेने आए थे न उनके कहने से…….देख लिया, मैं ठीक हूँ…….अंदर जाकर उन्हें भी देख आओ……अभी मिलने का समय है I”

   भारत के गाँवों के बदलते मिजाज को उपन्यासकार ने ‘रमला बहू’ में जीवंत कर दिया है I इसमें भारत के बदलते हुए गाँवों की सच्ची तस्वीर है I सहज भाषा में लिखे गए इस उपन्यास में समस्त विशेषताओं–कमियों के साथ ग्रामीण जनपद मुखर हो उठा है I गाँवों के छल-प्रपंच, घटिया राजनीति और एक–दूसरे को फंसाने की आपराधिक प्रवृत्ति को उपन्यासकार ने प्रभावशाली रूप में चित्रित किया है I गांधीजी ने जिस ग्राम स्वराज्य की परिकल्पना की थी, गाँवों में उस पंचायती व्यवस्था की धज्जियाँ उड़ती हैं I ‘रमला बहू’ में ग्राम्य जीवन की विकृति, त्रासदी, बेचारगी, दैन्य, शोषण और जातीय संघर्ष का अत्यंत प्रभावशाली चित्रण किया गया है I रमला के लिए तो मदन ने मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कर दिया और छिद्दा सिंह ने भी उसका साथ दिया, लेकिन आज भी लाखों रमला बेमेल विवाह की चक्की में पिसने के लिए अभिशप्त हैं I इसमें शोषण, अन्याय, उत्पीडन के साथ–साथ व्यापक फलक पर मेला–ठेला, रीति-रिवाज, खेती-किसानी आदि का भी चित्रण किया गया है I उपन्यास की भाषा सहज–सरल और शैली बोधगम्य है I

पुस्तक-रमला बहू

लेखक-रूपसिंह चंदेल

प्रकाशक-भावना प्रकाशन, दिल्ली

चौथा संस्करण-2023

मूल्य-400/-   

*वीरेन्द्र परमार

जन्म स्थान:- ग्राम+पोस्ट-जयमल डुमरी, जिला:- मुजफ्फरपुर(बिहार) -843107, जन्मतिथि:-10 मार्च 1962, शिक्षा:- एम.ए. (हिंदी),बी.एड.,नेट(यूजीसी),पीएच.डी., पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक,सांस्कृतिक, भाषिक,साहित्यिक पक्षों,राजभाषा,राष्ट्रभाषा,लोकसाहित्य आदि विषयों पर गंभीर लेखन, प्रकाशित पुस्तकें :1.अरुणाचल का लोकजीवन 2.अरुणाचल के आदिवासी और उनका लोकसाहित्य 3.हिंदी सेवी संस्था कोश 4.राजभाषा विमर्श 5.कथाकार आचार्य शिवपूजन सहाय 6.हिंदी : राजभाषा, जनभाषा,विश्वभाषा 7.पूर्वोत्तर भारत : अतुल्य भारत 8.असम : लोकजीवन और संस्कृति 9.मेघालय : लोकजीवन और संस्कृति 10.त्रिपुरा : लोकजीवन और संस्कृति 11.नागालैंड : लोकजीवन और संस्कृति 12.पूर्वोत्तर भारत की नागा और कुकी–चीन जनजातियाँ 13.उत्तर–पूर्वी भारत के आदिवासी 14.पूर्वोत्तर भारत के पर्व–त्योहार 15.पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक आयाम 16.यतो अधर्मः ततो जयः (व्यंग्य संग्रह) 17.मणिपुर : भारत का मणिमुकुट 18.उत्तर-पूर्वी भारत का लोक साहित्य 19.अरुणाचल प्रदेश : लोकजीवन और संस्कृति 20.असम : आदिवासी और लोक साहित्य 21.मिजोरम : आदिवासी और लोक साहित्य 22.पूर्वोत्तर भारत : धर्म और संस्कृति 23.पूर्वोत्तर भारत कोश (तीन खंड) 24.आदिवासी संस्कृति 25.समय होत बलवान (डायरी) 26.समय समर्थ गुरु (डायरी) 27.सिक्किम : लोकजीवन और संस्कृति 28.फूलों का देश नीदरलैंड (यात्रा संस्मरण) I मोबाइल-9868200085, ईमेल:- [email protected]

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