ग़ज़ल
अन्वेषी राहों में जाना अच्छा लगता है।
खोजबीन में कुछ पा जाना अच्छा लगता है।
महक गुलाबों वाली आखिर सबके सब सूंघेंगे ही,
खुशबू वाली इत्र लगाना अच्छा लगता है।
मन पागल हो भागे और पुकारे प्रतिक्षण तुमको,
राह पकड़ कर बढ़ते जाना अच्छा लगता है।
मेरी याद पुकारे तुमको और बनाये दीवाना,
सपनों के पल आना-जाना अच्छा लगता है।
ढ़ाई आखर शब्द बुनो और गीत प्रेम के गाना तुम,
सागर सी गहराई पाना अच्छा लगता है।
— वाई. वेद प्रकाश