चलो मार्निंग वाक पर
दादाजी अब अंगुली पकड़ो,
चलो मार्निंग वाक पर।
सुबह सबेरे पांच बजे ही,
छोड़ दिया बिस्तर मैंने।
ब्रश मंजन कर जूते पहने,
हूं तैयार सूट पहने।
चिड़ियां चीं चुंग लगी चहकने,
नीम पेड़ की शाख पर।
सूरज अभी नहीं निकला है,
मौसम बड़ा सुहाना है।
दौड़ लगाकर सड़कों पर अब,
मुझको भी मस्ताना है।
गुस्से की मक्खी क्यों बैठी,
आज आपकी नाक पर।
अंडे से नन्हा सा चूजा,
जैसे बाहर आ जाता ।
वैसे ही सूरज पूरब में,
क्षितिज फोड़ मुंह दिखलाता |
सवा पाँच बज चुके उठो अब,
गुस्सा रख दो टाक पर
— प्रभूदयाल श्रीवास्तव