ग़ज़ल
पूरे न जो हो सके उन वादों का क्या करें
जो रह गये अधूरे इरादों का क्या करें
कोशिश बहुत की तुमको दिल से निकाल दें
फिर भी ज़हन में रह गयी यादों का क्या करें
यूँ तो बहुत बारिश ने तन-मन भिगो दिया
तुम्हारे बिना सूने सावन-भादों का क्या करें
तैश में आ तुमने मेरा दिल चीर तो दिया
दिल से निकले अब इन बुरादों का क्या करें
“अंजान” तमाम तरकीबें कीं पर पौधे सूख गये
पोषण नहीं मिलता जिनसे खादों का क्या करें
— डॉ. विजय कुमार सिंघल “अंजान”