गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

ये किसने लगाई आग कि जल रही है हवा
पता नहीं किस मौसम में पल रही है हवा ।
लोग कहते हैं बद जात है शहरों की हवा
गांवों में भी कुछ अच्छी नहीं चल रही है हवा।
झुलस गए हैं सभी लोग अंदर बाहर से
धुआं धुआं शहर है घर घर जल रही है हवा ।
आई सुबह बनकर सबको जगाने हवा
सबकी बनके मौत गले मिल रही है हवा।
सबको पता है लेकिन सुलझा नहीं मसला
फूलों से है घायल कांटो से मसल रही हवा ।
जिंदा रहने को जिंदगी दो अब इस हवा को
दम घूंट रहा है और ’साथी ’मर रही है हवा ।
— आशीष द्विवेदी साथी

आशीष द्विवेदी साथी

उदइया (गलियाकोट ) जिला डूंगरपुर राजस्थान पिन 314026 मोबाइल 9784509920 ashishdwivediudaiya@gmail.com