यात्रा वृत्तान्त

मेरी प्रथम यूरोप यात्रा

वास्तव में मानव जीवन एक यात्रा है I जीवन-यात्रा में फूल भी मिलते हैं, शूल भी, विष भी मिलता है, अमृत भी I एक ओर कुछ मानव वेशधारी आसुरी शक्तियाँ जीवन-पथ को कंटकित करने का प्रयास करती हैं तो कुछ अजाने-अज्ञात मनुष्य जीवन-समर में पार्थ बनकर प्रकट होते हैं I जीवन-यात्रा में पड़नेवाले अवरोधक भी कुछ न कुछ सीख देते हैं और आसुरी शक्तियां भी अप्रत्यक्ष रूप से कर्म पथ पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं I जीवन एक नदी है और मनुष्य एक तैराक I  कुशल तैराक जीवन-नदी को पार कर जाते हैं, लेकिन अनाड़ी बीच रास्ते में ही हाँफने लगते हैं I कालपुरुष जीवन-यात्रा को नियंत्रित करता है I इसे नियति, समय या कालचक्र कुछ भी नाम दिया जा सकता है, लेकिन मनुष्य के जीवन में इस कालपुरुष की भूमिका निर्णायक होती है-

               भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्ताः तपो न तप्तं वयमेव तप्ताः II

               कालो न यातो वयमेव याताः तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णाः II

                      (भ्रतृहरि-वैराग्य शतक)

अर्थात भोगों को हमने नहीं भोगा, बल्कि भोगों ने हमें ही भोग लिया I तपस्या हमने नहीं की, बल्कि हम खुद तप गए I काल कहीं नहीं गया, बल्कि हम स्वयं चले गए I इस सबके बाद भी कुछ पाने की मेरी तृष्णा जीर्ण नहीं हुई, बल्कि हम स्वयं जीर्ण हो गए I काल की गति बहुत निर्मम होती है I काल की समरस चक्की सबको पीसती चलती है I समय सबसे बड़ा गुरु, न्यायाधीश और आलोचक होता है I समय की सत्ता के सम्मुख मनुष्य की कोई सत्ता नहीं है I गुजरता हुआ समय मनुष्य को कोई न कोई सीख देता चलता है, लेकिन अपने अहंकार, लोभ और अज्ञान के कारण अधिकांश मानव सीख ग्रहण करने से वंचित रह जाते हैं I बड़े-बड़े शूरमा काल की चक्की में पिस जाते हैं I काल बड़े-बड़े भूपतियों के पैरों के नीचे की जमीन खिसका देता है I जो लोग दंभ भरते हैं कि दुनिया मेरी मुट्ठी में बंद है, काल उनकी मुट्ठी को भी रिक्त कर देता है I समय के पास सबका लेखा-जोखा और सबका बही-खाता होता है I समय का साँड़ सभी के खेत चरता है, सबको सींग मारता है, सबको रौंदता है I समय से बड़ा कोई नहीं है, स्वयं समय भी समय से बड़ा नहीं है I समय का अपना एक अनुशासन है जिसके अनुसार लाखों वर्षों से वह बिना रुके, बिना थके चला जा रहा है I कालपुरुष ने ही मेरे जीवन की दिशाएँ निर्धारित की हैं I योजनानुसार मेरे जीवन में कुछ भी घटित नहीं हुआ है I वर्ष 1992 से पहले पूर्वोत्तर भारत मेरे लिए पूर्ण रूप से अपरिचित था I हिंदी प्रदेशों में रहनेवाले आम युवकों की तरह पूर्वोत्तर भारत और मेरे बीच अपरिचय का ऊँचा हिमालय खड़ा था I पहली बार मैं वर्ष 1992 में पूर्वोत्तर भारत में गया और तब से इस अंचल में मेरा मन ऐसा रमा कि मैं यहीं का होकर रह गया I यह सब किसी योजना के अनुसार नहीं, बल्कि अनायास हुआ I पूर्वोत्तर भारत में लगभग सोलह वर्ष रहने के बाद अब तो लगता है कि पूर्वोत्तर भारत ही मेरी वास्तविक जन्मभूमि है I मैंने कभी नहीं सोचा था कि पूर्वोत्तर भारत के समाज, साहित्य और संस्कृति पर इतना विपुल लेखन करूँगा, लेकिन कालपुरुष अथवा भाग्य देवता ने मुझसे यह काम करवा दिया I मुझे अब खुद ही अपने ऊपर आश्चर्य होता है कि मैंने इतना लेखन कैसे कर लिया I अक्सर मेरे सम्मुख विगत पैंतीस-चालीस वर्षों का कालखंड साकार हो उठता है जो संघर्ष, अर्थाभाव, परिश्रम, अपमान व उपेक्षा की लंबी सुरंग से गुजरा है I देखा जाए तो पूर्वोत्तर संबंधी विपुल लेखन से मुझे किसी प्रकार का भौतिक अथवा अभौतिक लाभ प्राप्त नहीं हुआ है I गोस्वामी तुलसीदास के शब्दों में कहा जाए तो मेरा लेखन स्वांतःसुखाए है I जिस देश में जोगाड़ और गॉडफादर के बिना पत्ता भी नहीं हिलता हो वहाँ लेखन के बल पर किसी भौतिक अथवा अभौतिक लाभ की अभिलाषा करना भी स्वयं के साथ छल करना है I पूर्वोत्तर संबंधी लेखन के कारण अनेक स्वनामधन्य पूर्वोत्तर विशेषज्ञ मेरे शत्रु बन गए, सोसल मीडिया में मेरा चरित्र हनन और मेरे विरुद्ध अपप्रचार किया I इन लोगों ने पूर्वोत्तर के लोकजीवन पर कुछ नहीं लिखा है, लेकिन अपने कुछ चेले अवश्य तैयार कर लिए हैं जो उनकी धूर्तता को चापलूसी की टोपी पहनाते रहते हैं I मैंने तीस वर्षों तक ईमानदारीपूर्वक ऐसी नौकरी की जिसे मैं पसंद नहीं करता था और ऐसे विभाग में नौकरी की जो घोर असंवेदनशील व मूर्खता का महाद्वीप है I इस विभाग के अधिकारी अपनी प्रशासनिक अक्षमता और मानसिक विकलांगता को आभूषण की तरह धारण करते हैं I इसी तरह मैंने कभी ऐसी योजना नहीं बनायी थी कि मैं यूरोप का भ्रमण करूँगा, लेकिन यूरोप आ गया I बेटी अर्चना और दामाद अंकित कई वर्षों से नीदरलैंड आने का आग्रह कर रहे थे, लेकिन कोविड-19 और सरकारी नौकरी का बहाना बनाकर मैं उनके आग्रह को लगातार टालता जा रहा था I जब मैं सेवानिवृत्त हो गया, कोविड-19 की भयावहता भी कम हो गई और उन्होंने वीजा आदि की औपचारिकताएं पूर्ण कराकर हम दोनों पति-पत्नी का फ्लाइट टिकट भेज दिया तो जाने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं था I यूरोप जाने के पहले मैं बहुत तनाव में था I उच्च रक्तचाप के साथ-साथ प्लेटलेट भी कम हो गया था I स्वास्थ्य ठीक नहीं रहने के बावजूद मैंने सभी तनावों को ठोकर मारकर नीदरलैंड जाने का दृढ निश्चय कर लिया I मैं, पत्नी सुधा जी, दामाद अंकित और अंकित की माँ संध्याजी 6 अप्रैल 2023 को भारतीय समयानुसार सुबह आठ बजे नई दिल्ली से पोलैंड की लॉट एयरलाइन्स की फ्लाइट से रवाना हुए I आठ घंटे की लम्बी उड़ान के बाद हमलोग पोलैंड के वारसा एयरपोर्ट पर पहुँचे I वारसा में फ्लाइट लैंड करने के उपरांत एयरपोर्ट की बस में जिस भयंकर ठंढ का अनुभव हुआ उसका वर्णन करना कठिन है I ठंढ से दांत बज रहे थे और शरीर काँप रहा था I कुछ ठंढवीरों को छोड़कर अधिकांश यात्रियों की एक ही दशा थी I बस और एयरपोर्ट के बीच मुश्किल से दस मिनट का समय लगा होगा, लेकिन ये दस मिनट बहुत भारी थे I एयरपोर्ट के अंदर आने के बाद जान में जान आयी क्योंकि एयरपोर्ट के अंदर का तापमान नियंत्रित होता है I वारसा एयरपोर्ट पर इमिग्रेशन के लिए लंबी-लंबी लाइन लगी थी I लगभग 45 मिनट में हमलोगों का नंबर आया I इमिग्रेशन के लिए अनेक काउंटर थे, लेकिन हमारे काउंटर पर लगभग पचास वर्ष की एक दुबली-पतली महिला बैठी थी जो हमसे पहले कई लोगों को डांट लगा चुकी थी I इमिग्रेशन के दौरान हम सबका तनाव उस समय और बढ़ गया जब मेरा फिंगरप्रिंट नहीं मिला I कई बार प्रयास करने के बाद भी फिंगरप्रिंट नहीं मिलने से हमलोग चिंतित थे I अक्सर भारत में भी मेरा फिंगरप्रिंट नहीं मिलता है I हमलोग तो चिंतित थे ही, हमलोगों का हाल देखकर काउंटर पर तैनात महिला भी चिंता में पड़ गई I उसने दाएं-बाएँ हाथ की उँगलियों का फिंगरप्रिंट मिलाया, लेकिन कोई फिंगरप्रिंट मैच नहीं हुआ I तब उस महिला ने अपने किसी उच्च अधिकारी से बात की और मेरा हाल-ए-फिंगरप्रिंट बताया I शायद उस महिला ने मेरे चेहरे की बेचारगी को पढ़ लिया था I उच्च अधिकारी ने क्लियरेंस दे दिया I उच्च अधिकारी से हरी झंडी मिलते ही महिला अधिकारी ने मेरा इमिग्रेशन क्लियर कर दिया I इसके बाद चिंता से मुक्ति मिली I यात्री सुविधा की दृष्टि से वारसा हवाई अड्डा दिल्ली से बहुत नीचे है I दिल्ली हवाई अड्डे पर जो उच्च कोटि की यात्री सुविधाएँ उपलब्ध हैं वैसी वारसा हवाई अड्डे पर नज़र नहीं आयी I मेरे मानस में दिल्ली एयरपोर्ट की छवि अंकित थी, लेकिन दिल्ली की तुलना में तो वारसा एयरपोर्ट कहीं नहीं टिकता I वारसा एयरपोर्ट पर तीन घंटे का विश्राम था I इसके बाद वारसा से एम्स्टर्डम की एक घंटे चालीस मिनट की उड़ान थी I हमलोग यूरोपीय समयानुसार रात्रि के आठ बजे एम्स्टर्डम एयरपोर्ट पहुँचे I हम चार व्यक्ति थे I इसके अतिरिक्त पाँच-छह बैग भी थे I हम सभी एक कार में आ नहीं सकते थे I इसलिए बेटी अर्चना और अंकित के भाई शशांक दो कार लेकर हमलोगों को लेने के लिए एम्स्टर्डम एयरपोर्ट् पर आए थे I जिस अर्चना को हमलोग छुई-मुई समझते थे उसे एम्स्टर्डम की व्यस्त सड़कों पर पूरे आत्मविश्वास के साथ कार चलाते देखकर सुखद आश्चर्य हुआ I एम्स्टर्डम एयरपोर्ट से लगभग एक सौ किलोमीटर दूर नीदरलैंड का शहर डेन बॉस (Den Bosch) स्थित है जिससे 6 किलोमीटर दूर रोसमालेन में अर्चना-अंकित का मकान है I लगभग दो साल पहले इन्होंने यह मकान ख़रीदा था I एक घंटे में हमलोग एम्स्टर्डम एयरपोर्ट से रोसमालेन पहुँचे I वर्षा हो रही थी और ठंढ अधिक थी I ठंढ और थकान से शरीर शिथिल हो चुका था I रात काफी हो चुकी थी I इसलिए हमलोग खाना खाकर सो गए I

*वीरेन्द्र परमार

जन्म स्थान:- ग्राम+पोस्ट-जयमल डुमरी, जिला:- मुजफ्फरपुर(बिहार) -843107, जन्मतिथि:-10 मार्च 1962, शिक्षा:- एम.ए. (हिंदी),बी.एड.,नेट(यूजीसी),पीएच.डी., पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक,सांस्कृतिक, भाषिक,साहित्यिक पक्षों,राजभाषा,राष्ट्रभाषा,लोकसाहित्य आदि विषयों पर गंभीर लेखन, प्रकाशित पुस्तकें :1.अरुणाचल का लोकजीवन 2.अरुणाचल के आदिवासी और उनका लोकसाहित्य 3.हिंदी सेवी संस्था कोश 4.राजभाषा विमर्श 5.कथाकार आचार्य शिवपूजन सहाय 6.हिंदी : राजभाषा, जनभाषा,विश्वभाषा 7.पूर्वोत्तर भारत : अतुल्य भारत 8.असम : लोकजीवन और संस्कृति 9.मेघालय : लोकजीवन और संस्कृति 10.त्रिपुरा : लोकजीवन और संस्कृति 11.नागालैंड : लोकजीवन और संस्कृति 12.पूर्वोत्तर भारत की नागा और कुकी–चीन जनजातियाँ 13.उत्तर–पूर्वी भारत के आदिवासी 14.पूर्वोत्तर भारत के पर्व–त्योहार 15.पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक आयाम 16.यतो अधर्मः ततो जयः (व्यंग्य संग्रह) 17.मणिपुर : भारत का मणिमुकुट 18.उत्तर-पूर्वी भारत का लोक साहित्य 19.अरुणाचल प्रदेश : लोकजीवन और संस्कृति 20.असम : आदिवासी और लोक साहित्य 21.मिजोरम : आदिवासी और लोक साहित्य 22.पूर्वोत्तर भारत : धर्म और संस्कृति 23.पूर्वोत्तर भारत कोश (तीन खंड) 24.आदिवासी संस्कृति 25.समय होत बलवान (डायरी) 26.समय समर्थ गुरु (डायरी) 27.सिक्किम : लोकजीवन और संस्कृति 28.फूलों का देश नीदरलैंड (यात्रा संस्मरण) I मोबाइल-9868200085, ईमेल:- [email protected]

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