कविता

आम के आम, गुठलियों के दाम

योग, प्राणायाम और सघन ध्यान,
मतलब खुद की, खुद से पहचान
ऊपर से ,सारगर्भित, व्याख्यान
इसी को तो, कहते हैं
आम के आम, गुठलियों के दाम।

साथ में प्रकृति संग आंखमिचौली
मित्रों का संग,और हंसी- ठिठोली
स्वादिष्ट व्यंजनों का, है प्रावधान
इसी को तो, कहते हैं
आम के आम, गुठलियों के दाम ।

विश्राम का भी, बंदोबस्त किया है
गीत-संगीत का ,जिम्मा लिया है
किया है आगे, बढ़कर सब काम
इसी को तो, कहते हैं
आम के आम, गुठलियों के दाम।

ऐसा कुछ ज्यादा, खर्च भी नही है
दूरी भी इतनी कुछ,अधिक नही है
आरामदायक बस, का है इंतजाम
इसी को तो, कहते हैं
आम के आम, गुठलियों के दाम।

चलो आनंद और, खुशियां मनाएं
आपस में, जान- पहचान, बढ़ाएं
रहेगी, जारी यात्रा, यह अविराम
इसी को तो, कहते हैं
आम के आम , गुठलियों के दाम।

योगी जी की, लगन और समर्पण
कुमार जी का, स्नेहिल, आमंत्रण
बन गयी खूबसूरत,आज की शाम
इसी को तो, कहते हैं
आम के आम, गुठलियों के दाम।

यात्रा का यह तो, प्रथम चरण है
आगे अभी ऐसे, और भी भ्रमण हैं
आयोजकों को,मेरा शत्शत् प्रणाम
इसी को तो, कहते हैं
आम के आम, गुठलियों के दाम

— नवल अग्रवाल

नवल किशोर अग्रवाल

इलाहाबाद बैंक से अवकाश प्राप्त पलावा, मुम्बई

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