मजार
मजार पर चढती चादरों ने,
एक सबक़ सिखाया है,
हम-सब को बिल्कुल सही वक्त पर यहां।
कैसी बिंदास किरदार में,
मरे हुए लोगों पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते रहते हैं सब लोग अक्सर सोचते रहते हैं यहां।
भीड़भाड़ वाले इलाके में,
मजार पर चादर चढ़ाने की होड़ देखकर,
तरह-तरह की बातें,
करते रहते हैं यहां पर रहने वाले लोग यहां।
कैसी विडम्बना है कि,
मरे हुए इन्सान इन चादरों को,
सिर्फ महसूस ही कर रहें होंगे वहां।
यही विश्वास है दुनिया की,
सब इस अन्दाज़ में ही,
अपनी अपनी सोच रखते हैं यहां।
ग़रीबी और लाचारी फिर भी अलग है,
इस जहां में,
इनकी गाथा की जरूरत पड़ती नहीं है यहां।
सम्बन्धों को लंबे समय तक,
देखने की कोशिश में लगे हुए रहते हैं सब लोग यहां।
हमेशा आगे बढ़ने में,
इसकी वजह जानना चाहते हैं,
इस ज़िन्दगी में यहां।
आज़ मजाक में कहा गया है कि,
क्या चादरों की गर्मी,
मरहूम फकीर को मिलती होगी जन्नत में वहां।
फिर क्यों तरह-तरह की बातें,
सब करते हुए नहीं थकते हैं यहां।
आज़ मजार के नजदीक एक,
भीड़भाड़ दिखी,
लोग की भीड़ बढ़ने लगी,
जानने की कोशिश करने लगे,
आखिर क्यों यह भीड़भाड़ है वहां।
जानकर तकलीफ हुई,
एक फकीर एक नग चादर की ख़ोज में,
मरहूम हो गया था वहां।
आज़ कशमकश में दिखने लगे थे लोग वहां,
सब इस मजार पर,
पड़े हुए अनगिनत चादरों को,
बस एक टक से देखने लगे थे वहां।
फिर थोड़ी देर बाद ही,
भीड़भाड़ छंटने लगी,
सरकारी वाहन के आने से ही,
मैय्यत अब जाने लगी
लोगों को इस बात का अहसास हुआ कि,
मरहूम फकीर के लिए इतनी चादरों की भला क्या जरूरत थी,
एक अदद चादर से ही,
फकीर की जान बचाई जा सकती थी।
इस बाबत कुछ चर्चाएं शुरू हुई,
परन्तु तमाम लोगों की आंखें,
थोड़ी भी नमः नहीं दिखीं।
आहिस्ते आहिस्ते भीड़ छंटने लगीं,
अगले शुक्रवार को,
फिर मजार के चबूतरे पर जमा होकर,
मजार पर चादरों को,
चढ़ाने की जरूरत पर,
धीमे-धीमे बातें करते हुए,
लोगों की भीड़ कमने लगीं।
— डॉ. अशोक, पटना