ठोकरें खाने वाले
ठोकरें खाने वाले,
कुछ सीख ज़रूर जातें हैं।
इस इल्म को हासिल कर,
मजबूत क़दम उठाते हैं।
नजदिकियां बढ़ाने से,
अक्सर परहेज़ करते हैं,
उन्हें इसकी वज़ह से ही,
कुछ लोग हमदर्दी जताते हैं,
इस जहां की इस मुहिम पर,
अक्सर सोचने समझने लगते हैं,
क्या यही जिंदगी की,
सबसे बड़ी सीख है,
यहां तो कोई बिल्कुल नहीं समीप है।
फिर इतना मुहब्बत हम क्यों करें,
वक्त आने पर,
हमेशा ये तो बस दूर-दूर ही थे रहे,
फिर दोस्ती का,
इजहार हम क्यों करें।
खुशियां का पहर थोड़े ही है,
यहां पर सत्ता से बाहर जाने का,
बस बहाना बना कर,
लोग परहेज़ करना शुरू कर देते हैं,
हकीकत से रूबरू होना,
पसंद नहीं करते हैं।
हमें तो एक अनपढ़ों का हुजूम चाहिए,
जहां बस प्यार ही प्यार हो,
मतलबी निगाहों का,
असर नहीं दिखें,
सबमें विश्वास हो,
उम्मीद बनाएं रखने का,
सबमें अहसास दिलाने का दस्तूर रहें,
खुदगर्जी में बदलाव लाने की,
कोशिश दिखें।
यही वजह है कि हमने,
दोस्ती का संकल्प लिया है,
कमजोर दोस्तों को,
सीने में जगह दिया है।
इन्हीं में विश्वास है,
अपनेपन का अहसास है,
सत्य चक्र में बदलाव लाने की,
एक उम्मीद पैदा करने का जुनून है,
ज्ञान दर्पण में बदलाव लाने का,
नवीन प्रयास है,
हम कह सकते हैं,
यही सबसे बड़ी इबादत है,
कह सकते हैं,
आगे बढ़ने का जज्बा पैदा करना सिखाएंगी,
दुनिया भर में,
सबको देंगी सुकून है।
— डॉ. अशोक,पटना