संसद की लड़ाई अदानी से होकर सोरोस पर आई
वैश्विक स्तरपर दुनिययाँ के अनेकों लोकतांत्रिक देश में वहां के निचले व उच्च सदन के लिए निर्वाचित सदस्यों के बीच सदन जूते चप्पलों का चलना कुर्सियां फेंकना व आपसी मारपीट के अनेक मामले हम टीवी चैनलों के माध्यम से देख चुके हैं जो एक लोकतंत्र के मंदिर में किसी भी प्रकार से उचित नहीं ठहराया जहां सकता यह उस जनता का अपमान है जिन्होंने उन्हें का समाधान करने वह उनका जीवन बेहतर बनाने के लिए उन्हें चुना है। आज हम इस विषय पर चर्चा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि 25 नवंबर से 20 दिसंबर 2024 तक चलने वाले भारतीय संसद के शीतकालीन सत्र में हम पहले दिन से ही देख रहे हैं कि काफी हंगामा मचा हुआ है,सदन नहीं चल रहा है व लगातार स्थगित हो रहे हैं। मंगलवार 10 दिसंबर 2024 को को 11 बजे दोनों सदनों की कार्यवाही शुरू हुई। हंगामे के चलते पहले 12 बजे तक सदन स्थगित कर किया गया।12 बजे कार्यवाही शुरू होने के बाद भी अडाणी-जॉर्ज सोरोस मुद्दे पर हंगामा जारी रहा, स्पीकर ने बुधवार तक के लिए सदन स्थगित कर दिया।विपक्ष लगातार उद्योगपति मामले पर जेपीसी की मांग कर रहा है जिसपर सदन में चर्चा हो परंतु अब सत्ता पक्ष मैं भी जार सोरोन का मुद्दा उठाकर बड़ी पार्टी को भी घेरा है जिससे अब और भी स्थिति गंभीर होती जा रही है जनता देख रही है पिछले, कुछ सत्रों से हम देख रहे हैं कि लोकसभा सत्र के दौरान ही कोई गंभीर मुद्दा उठता है और उसपर हंगामा शुरू हो जाता है और जनता की गाड़ी कमाई का पैसा यूं ही अपव्यय हो जाता है।चूँकि भारतीय संसदीय शीतकालीन सत्र 25 नवंबर से 20 दिसंबर 2024 तक चल रहा है, संसद की लड़ाई अदानी से होकर सोरोस पर आई-दुनियाँ की जनता देखती रही।
साथियों बात अगर हम हंगामेंदार शीतकालीन सत्र की करें तो शीतकाल में दिल्ली का पारा गिरता जा रहा है लेकिन संसद में सियासी तापमान प्रचंड है।शुरुआती छह में से पांच दिनों की कार्यवाही हंगामे की भेंट चढ़ने के बाद कामकाज पटरी पर लौटा ही था कि दोनों ही सदन फिर से बेपटरी हो गए हैं। लोकसभा से राज्यसभा तक अडानी मुद्दे पर विपक्ष आक्रामक है तो वहीं अब दोनों सदनों में ट्रेजरी बेंच भी फ्रंटफुट पर आ गया है।संसद में अडानी मुद्दे से शुरू हुआ संग्राम अब जॉर्ज सोरोस पर आ गया है संसद के शुरुआती हफ्ते में जहां विपक्ष का अडानी पर आक्रामक रवैया सदन की कार्यवाही में बाधा बना तो वहीं अब विपक्ष के इस मुद्दे का जवाब सत्ता पक्ष के सदस्य संसद में जॉर्ज सोरोस के मुद्दे से दे रहे हैं।सत्ता पक्ष ने सोमवार को सोरोस मुद्दे पर चर्चा की मांग को लेकर हंगामा किया जिसकी वजह से राज्यसभा की कार्यवाही पहले दोपहर 12 बजे और फिर 2 बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई।विपक्ष के नेता ने कहा है कि अगर ये तय करके आए हैं कि सदन नहीं चलने देंगे तो आप लोकतंत्र की हत्या कर रहे हैं।केरल के सांसद ने कहा कि सोरोस के मुद्दे पर चर्चा हो लेकिन उसके साथ ही अडानी मुद्दे पर भी चर्चा हो।कांग्रेस के सांसदों ने सत्ता पक्ष के रवैये को अडानी को बचाने की कोशिश बताया।विपक्ष के सदस्यों के विरोध के बाद संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही सोमवार को दिन भर के लिए स्थगित कर दी गई। विपक्षी सदस्यों का दावा है कि विभिन्न मुद्दों पर चर्चा के उनके अनुरोध को सत्ता पक्ष द्वारा नजरअंदाज किया जा रहा है। इनमें दिल्ली में किसानों का विरोध प्रदर्शन और मणिपुर में चल रहा संघर्ष शामिल है। वहीं, दूसरी ओर सत्ताधारी पार्टी ने वरिष्ठ कांग्रेस नेता के फोरम ऑफ डेमोक्रेटिक लीडर्स इन एशिया पैसिफिक (एफडीएल-एपी) फाउंडेशन के जॉर्ज सोरोस फाउंडेशन के साथ कथित संबंध के बारे में दावा किया है।
साथियों बात अगर हम अडानी बानाम सोरोस की करें तो संसद में सोरोस का मुद्दा आज गतिरोध बनकर सामने आया है लेकिन यह चैप्टर आज ही शुरू नहीं हुआ है, इसकी झलक 6 दिसंबर, शुक्रवार को ही देखने को मिल गई थी, तब अडानी मुद्दे पर हमलावर विपक्ष और कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करते हुए सत्ताधारी पार्टी के एक सांसद ने यह मुद्दा लोकसभा में उठाया था, झारखंड के सांसद ने सोरोस का मुद्दा उठाते हुए विपक्षी कांग्रेस से 10 सवाल पूछे थे। उन्होंने विपक्ष के नेता की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान सोरोस के किसी करीबी शेट्टी के नाम का जिक्र करते हुए भी सवाल पूछा था, इसी दौरान हंगामे की वजह से लोकसभा की कार्यवाही दिनभर के लिए स्थगित हो गई थी।केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री ने कार्यवाही शुरू होने से पहले कहा कि कुछ मुद्दे हैं जिन्हें राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। जॉर्ज सोरोस और उनके संबंध जो सामने आए हैं, हम इसे विपक्षी पार्टी या विपक्षी नेता से संबंधित मुद्दे के रूप में नहीं देखते, हमें इस मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए, यह भारत विरोधी ताकतों से संबंधित है, हमने कांग्रेस और अन्य दलों से कहा है कि हम 13-14 दिसंबर (लोकसभा में) और 16-17 दिसंबर (राज्यसभा में) को संविधान पर चर्चा करेंगे।कांग्रेस पार्टी के नेताओं और उसके कार्यकर्ताओं से अपील करना चाहता हूं कि अगर उनके नेताओं के भी भारत विरोधी ताकतों से संबंध पाए जाते हैं तो उन्हें भी अपनी आवाज उठानी जरूर चाहिए।
साथियों बात अगर हम जॉर्ज सोरोस को जानने की करें तोभारत की राजनीति में अमेरिका के अरबपति कारोबारी जॉर्ज सोरोस का नाम इन दिनों चर्चाओं में चल रहा है। बीजेपी ने विपक्षी बढ़ी पार्टी और विपक्ष के नेता समेत उनके परिवार की आलोचना करने के लिए सोरोस के नाम का सहारा लिया है। इतना ही नहीं बीजेपी ने सोमवार को लोकसभा में विपक्ष के नेता पर भारत को कथित तौर पर अस्थिर करने के लिए जॉर्ज सोरोस जैसी अंतर्राष्ट्रीय ताकतों के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया है। सत्ताधारी पार्टी लगातार सोरोस का नाम लेकर विपक्ष के नेता को घेर रही है। सत्ताधारी पार्टी ने इस मुद्दे पर चर्चा करने की मांग की जिसको लेकर राज्यसभा की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। सत्ताधारी पार्टी का आरोप है कि कांग्रेस नेता उस संगठन से जुड़ी हैं जो सोरोस से फंड लेती हैं।जॉर्ज सोरोस का नाम भारत में पहली बार नहीं आया है। इससे पहले भी सोरोस का नाम आ चुका है। इससे पहले अडाणी मुद्दे, मोदी सरकार पर टिप्पणी करके वह विवादों में आए थे। हंगरी के बुडापेस्ट में 1930 में सोरोस का जन्म हुआ था। सोरोस का नाता विवादों से रहा है। सोरोस का सबसे विवादित फाइनेंशियल मूव 1992 में आया था, उस समय उन्होंने ब्रिटिश पाउंड के खिलाफ दांव लगाया और एक ही दिन में 1 बिलियन डॉलर से अधिक की कमाई की। इसके बाद उन्हें द मैन हू ब्रोक द बैंक ऑफ इंग्लैंड का उपनाम भी दिया गया, जिसका अर्थ होता है-बैंक ऑफ इंग्लैंड को बर्बाद करने वाला व्यक्ति। पीएम मोदी के है धुर आलोचक है,जॉर्ज सोरोस की पहचान एक ऐसे व्यक्ति की रही है जो विश्व के कई देशों की राजनीति और समाज को प्रभावित करने के लिए अपना एजेंडा चलाता है। सोरोस को भारतीय पीएम की नीतियों का भी धुर आलोचक माना जाता है। 2020 में दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम पर एक भाषण के दौरान सोरोस ने पीएम और उनकी सरकार की खूब आलोचना की थी। उन्होंने सरकार परअधिनायकवाद को बढ़ावा देने का भी आरोप लगाया था। इसके अलावा सरकार पर विभाजनकारी नीतियों को लागू करने का आरोप लगाया। पीएम को सोरोस ने विश्व स्तरपर लोकतंत्र के लिए खतरा पैदा करने वाले राष्ट्रवादी नेताओं में से एक बताया था। सोरोस के इस बयान की भारतीय नेताओं ने कड़ी आलोचना की थी।
— किशन सनमुखदास भावनानी