कविता

खामोश कागज

यही कटु सत्य है,
मजबूत दृश्य है,
नवीन प्रयास है,
सटीक अहसास है।

आंदोलित मन को तसल्ली देती है,
अहसास दिलाने में,
खामोशियों से वज़ह पूछतीं है।

अक्षरों के मेले में,
यही आगाज़ दे रही है।
खामोशियों में शामिल,
कागज़ आज़ चुपचाप देखते हुए,
बस बरबस खुशियां ही,
सबमें पिरो रही है।

इस इल्म को पहचानते हैं सब लोग,
कहते और मानते हैं लोग।
इसकी सोहबत रखनी चाहिए यहां,
आगे बढ़ने में,
इसकी ज़रूरत है पड़ती है,
दुनिया क्या कहूं सारे जहां।

आनंद और उत्साह से,
इसकी वजह जानी जाती है।
अकेलापन महसूस कर,
नज़रों से देखते हुए,
सबको करीब लाती है।

खामोशियों से जुझते हुए,
इन कागजों पर,
अब लोग एतबार नहीं करते हैं।
बस अपनी हिफाजत करने में,
परेशान रहते हैं।

दुनिया में इल्म को हासिल करने वाले,
खामोश कागज़ की रफ्तार,
हमेशा आगे बढ़ाती है।
ज्ञान दर्पण में उम्मीद बनाएं रखने में,
इसकी पहुंच हरेक पड़ाव पर,
अक्सर देखने की जहां में,
भरपूर कोशिश की जाती है।

— डॉ. अशोक, पटना,

डॉ. अशोक कुमार शर्मा

पिता: स्व ० यू ०आर० शर्मा माता: स्व ० सहोदर देवी जन्म तिथि: ०७.०५.१९६० जन्मस्थान: जमशेदपुर शिक्षा: पीएचडी सम्प्रति: सेवानिवृत्त पदाधिकारी प्रकाशित कृतियां: क्षितिज - लघुकथा संग्रह, गुलदस्ता - लघुकथा संग्रह, गुलमोहर - लघुकथा संग्रह, शेफालिका - लघुकथा संग्रह, रजनीगंधा - लघुकथा संग्रह कालमेघ - लघुकथा संग्रह कुमुदिनी - लघुकथा संग्रह [ अन्तिम चरण में ] पक्षियों की एकता की शक्ति - बाल कहानी, चिंटू लोमड़ी की चालाकी - बाल कहानी, रियान कौआ की झूठी चाल - बाल कहानी, खरगोश की बुद्धिमत्ता ने शेर को सीख दी , बाल लघुकथाएं, सम्मान और पुरस्कार: काव्य गौरव सम्मान, साहित्य सेवा सम्मान, कविवर गोपाल सिंह नेपाली काव्य शिरोमणि अवार्ड, पत्राचार सम्पूर्ण: ४०१, ओम् निलय एपार्टमेंट, खेतान लेन, वेस्ट बोरिंग केनाल रोड, पटना -८००००१, बिहार। दूरभाष: ०६१२-२५५७३४७ ९००६२३८७७७ ईमेल - [email protected]

Leave a Reply