कविता

साल का अंतिम दिवस

साल का अंतिम दिवस ये कह रहा हैं आज हमसे
मैं तुम्हारी भूल लेकर जा रहा लौटू न फिरसे
कर प्रायश्चित भूल दोहराना नहीं गत में करी जो
छोड़ना दुर्भावनाएं हों अगर मन में कहीं जो
और आगत को सजाना प्राप्त सारे अनुभवों से
और जीवन को सजाना कर्मरत हो साधना से
जिंदगी की उम्र से एक वर्ष फिर कम हो गया है
शेष जीवन के पलों को सीख अनुपम देगया है
सीखना बीते समय से और हर पल को सजाना
नवल सूरज की किरण बन झिलमिलाना जगमगाना
नफरतें दिल से भुलाना रंजिशे मत पालना अब
सत्य संयम धर्म रत हो तुम स्वयं को ढालना अब
जा रहा हूँ मैं समय की गर्त में कुछ याद देकर
आंसुओ के संग हँसी पल दर्द,दहशत याद देकर
हर बुराई भेंट देकर आज मुझको दो बिदाई
अवगुणो की दे तिलांजलि सद्गुणों की लो मिताई
वर्ष नूतन आ रहा है इक नया उल्लास लेकर
आस्था, संकल्प दृढ़ संयम नया विश्वास लेकर
कल नया सूरज उगेगा फिर नया होगा सवेरा
नवल आभा ज्ञान की लौ से मिटेगा हर अंधेरा
मृदुल मन की कल्पनाएं इस बरस साकार होंगी
नवल खुशियाँ जिंदगी का सार्थक आधार होंगी
— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016

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