ग़ज़ल
जब क़लम उठाते हैं
बस लिखते जाते हैं
जो चाहता हो हमको
उसमें ही समाते हैं
करते हैं सृजन ऐसा
जगती को जगाते हैं
क्या कुछ न बना पाएँ
हम प्रेम बनाते हैं
धुन अपने हृदय वाली
प्रतिक्षण ही रचाते हैं
पीड़ा के बिछौने पर
हम “गीत” सजाते हैं
— गीत
जब क़लम उठाते हैं
बस लिखते जाते हैं
जो चाहता हो हमको
उसमें ही समाते हैं
करते हैं सृजन ऐसा
जगती को जगाते हैं
क्या कुछ न बना पाएँ
हम प्रेम बनाते हैं
धुन अपने हृदय वाली
प्रतिक्षण ही रचाते हैं
पीड़ा के बिछौने पर
हम “गीत” सजाते हैं
— गीत