इतिहास

देशरत्न डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद : एक महान व्यक्तित्व

सादगी भरी जिंदगी जीने वाले गांधीजी के सच्चे शिष्य  डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को देशरत्न की उपाधि मिली थी।  अंतरिम सरकार में खाद्य और कृषि विभाग में मंत्री पद निभाने वाले डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बनने का सौभाग्य मिला।  डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने गांधीजी के आह्वान पर अपनी वकालती छोड़कर रचनात्मक कार्यों तथा आजादी की लड़ाई में  अपने को समर्पित कर दिए थे। इनकी शैक्षणिक योग्यता और मेधा काफी ऊंचे दर्जे की रही है। एक परीक्षक ने उनके बारे में लिखा था कि परीक्षार्थी परीक्षक से बेहतर है। प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद इन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से  एमए और कानून की डिग्री हासिल की। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानून में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने के बाद इन्होंने पटना तथा कलकत्ता उच्च न्यायालय में वकालत शुरू की।  लंगट सिंह कॉलेज में अंग्रेजी के अध्यापक भी बने। पटना विश्विद्यालय के पहले सीनेट और सिंडीकेट के सदस्य भी बनाए गए। इन्होंने अंग्रेजी सर्चलाइट और हिंदी देश का संपादन भी किया।

नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने पर  ब्रिटिश सरकार ने इन्हें जेल में डाल दिया। बांकीपुर पटना के जेल में ही इन्होंने अपनी आत्मकथा लिखी जिसका पहला प्रकाशन 1946 को हुआ था। बंबई अधिवेशन 1934 में वे कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। 1939 में त्रिपुरी कांग्रेस में नेताजी सुभाष बाबू के द्वारा अध्यक्ष पद त्याग दिए जाने पर इन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष  का पद सौंपा गया। सत्रह नवंबर 1947 को उन्होंने तीसरी बार कांग्रेस अध्यक्ष  का पद संभाला जब जेबी कृपलानी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।  संविधान सभा के अध्यक्ष के रूप में संविधान निर्माण में इनकी महती भूमिका रही है।

 26 जनवरी 1950 को  इन्होंने  राष्ट्रपति पद की शपथ ली। बारह वर्षों तक राष्ट्रपति के पद पर कार्यरत रहकर उन्होंने राष्ट्र को अपनी सेवा दी।  13 मई 1962 तक  वे राष्ट्रपति के पद पर रहे।  पटना के सदाकत आश्रम में रहकर   28 फरवरी 1963 को इन्होंने अंतिम सांस ली।  राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के सारण जिले में जिरादेई नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता महादेव सहाय फारसी और संस्कृत के विद्वान थे। इनकी माता कमलेश्वरी देवी धर्मपरायण महिला थीं। राजेंद्र प्रसाद की शादी मात्र बारह साल की उम्र में राजवंशी देवी के साथ हुआ था।  राजेंद्र प्रसाद की वेशभूषा अत्यंत साधारण थी और वे शाकाहारी थे। गांधीजी के पक्के अनुयायी राजेंद्र प्रसाद भारतीय सभ्यता और संस्कृति के कायल थे।

 प्यार से लोग इन्हें राजेंद्र बाबू  कहते थे। इन्होंने कई देशों की यात्राएं की है और आत्मकथा, इंडिया डिवाइडेड, गांधी के कदमों में तथा अन्य कई किताबें लिखी हैं। राजेंद्र प्रसाद की विनम्रता जग जाहिर है। कुछ मुद्दों पर नेहरू जी से इनके विचार अलग थे। वैचारिक मतभेद के वाबजूद पद की गरिमा के प्रतिकूल कोई कदम नहीं उठाया।  राष्ट्र निर्माण में इनके योगदान को स्वीकारते हुए 1962 को इन्हें भारतरत्न से सम्मानित किया गया। डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का जीवन और विचार हमेशा देशवासियों को  प्रेरित करते रहेंगे।

— निर्मल कुमार डे

निर्मल कुमार डे

जमशेदपुर झारखंड [email protected]

Leave a Reply