सम्मान की प्रतीक्षा
(१)
क्षणिक सम्मान की प्रतीक्षा न करना,
संवैधानिकता पर तुम सन्देह न करना।
प्रेम परिभाषित सम्मान जहां हो जाय,
वहां कभी प्रश्नवाचक संज्ञा न लगाना।।
(२)
शाश्वत की हर पंक्ति में तुम रहोगे,
एकता और अखंडता को परखोगे।
जहां वसुदेवकुटुम्ब सर्वनाम हो जाय,
ऐसे सम्मान का कभी महत्व जानोगे ।।
(३)
सम्मान की होड़ में सब पड़े हैं,
आलोचकों की भीड़ में जकड़े हैं।
हृदय पुष्प विभूषित जहां हो जाय,
वहां सदैव राधेकृष्ण सियाराम खड़े हैं।।
(४)
जीवन मूल्य प्रकृति सम्मान जहां नहीं है,
कागज़ के निर्जीव टुकड़ों का सम्मान वहां है।
कभी अन्धकार का ये अधूरा पर्दा खुल जाय,
तब जीवन के अनुभव,आदर्शों की धार बही है।।
— संतोषी किमोठी