महिलाओं के हक में कानून का हो रहा दुरुपयोग
इन दिनों बेंगलुरू के एआई इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या सुर्खियों में बनी हुई है। पत्नी के उत्पीड़न से परेशान होकर अतुल ने सुसाइड कर लिया। अतुल ने अपने सुसाइड नोट में अपने बेटे के लिए भी एक खत छोड़ा है और उसे खूब प्यार दिया है। अतुल की पत्नी उनसे मोटी रकम की मांग कर रही थी और अपने बेटे से भी मिलने नहीं दे रही थी। अतुल सुभाष की खुदकुशी चिल्ला-चिल्लाकर कहा रही है, अब स्त्री विमर्श पर पटाक्षेप हो और पुरुष विमर्श का आगाज़ किया जाए। कुछ महिलाओं ने अपने पक्ष में हर कानून को अपनी जागीर समझ लिया है।
स्त्री को ममता, दया और करुणा की देवी माना जाता है लेकिन आजकल कुछ मर्दों के हालात देखकर संदेह होता है। इन उपनामों की धज्जियां उड़ाते लड़कियाॅं महिला की गरिमा को तार-तार कर रही है। मर्द एक तो अपने मर्द होने की दहलीज़ लाॅंघने से घबराकता है, दूसरा सारे कानून महिलाओं के हक में होने की सज़ा भुगतता है। न कुछ कह सकता है, न सह सकता है।
जब पति पत्नी के बीच कोई अनबन होती है तब सभी को पहली नज़र में यही लगता है गलती पति की ही होगी। लेकिन हम भूल जाते है कि अति नारीवादी सोच और नारी विमर्श ने महिलाओं को अति आज़ाद कर दिया है। संवेदना का पलड़ा हर बार महिलाओं की ओर झूकते कुछ ज़्यादा ही झूक गया है। आज से कुछ समय पहले जो दयनीय स्थिति महिलाओं की हुआ करती थी अब धीरे-धीरे पुरुष वो स्थान ले रहा है।
घरेलू हिंसा के पीड़ितों में महिलाएं ही नहीं बल्कि पुरुष भी है। लेकिन उनकी आवाज इतनी धीमी है कि वह न तो समाज को और न ही कानून को सुनाई पड़ती है। पारिवारिक मसलों को सुलझाने के मकसद से चलाए जा रहे तमाम परामर्श केंद्रों की मानें तो घरेलू हिंसा से संबंधित शिकायतों में करीब चालीस फीसद शिकायतें पुरुषों से संबंधित होती हैं यानी इनमें पुरुष घरेलू हिंसा का शिकार होते हैं और उत्पीड़न करने वाली महिलाएं होती है। महिलाओं को सुरक्षा देने के जो कानून बने हैं, उनके दुरुपयोग से पुरुषों को प्रताड़ित किया जाता रहा है।
माना की आज की नारी प्रबुद्ध और सक्षम है, तो क्या अपनी गरिमा खो देनी चाहिये? पति-पत्नी दोनों दांपत्य रथ की धुरी है पति कोई खिलौना नहीं या न ही क्रेडिट कार्ड जो इस्तेमाल किया जाए। पति घर की नींव और परिवार का मुखिया होते है। माना की कुछ मर्द नरम स्वभाव के होते जीवन में शांति की कामना करते चुप्पी साधकर सब सह लेते है, तो क्या स्त्री को हक़ बनता है कि उसका फ़ायदा उठाया जाए। कुछ ऐसी औरतें भी है समाज में जो पति पर आधिपत्य जमाकर दमन करती है आज से मानों ३० साल पहले हमारे पडोस में रह रहे अच्छे खासे पढ़े लिखे इंसान ने अपनी पत्नी के ज़ुल्म से तंग आ कर खुदकुशी कर ली थी। और शायद आपने भी कहीं सुना होगा आसपास देखा भी हो ये अन्याय होते हुए। मतलब समाज में हमारी सोच से विपरीत भी बहुत कुछ ऐसा होता है।
कोई तंग आकर मुखर हो जाते है, विद्रोही बन जाते है तो कोई संकोचवश दमन सहते रहता है। क्या मानसिकता रहती होंगी उन स्त्रीओं की जो इस हद तक जाती होगी? सक्षम होना क़तई ये नहीं जताता कि आप स्वामिनी बन जाओ। सांसारिक व्यवस्था को अपने हाथ में लेकर एक मर्द पर अत्याचार करना विद्वता नहीं मूर्खता की निशानी है। एक मर्द को न्याय मांगने निकलना पड़े औरत के हाथों प्रताड़ित होते ये कोई अभिमान करने वाली बात तो हरगिज़ नहीं। समान हक़ और फ़र्ज़ की बातें जितनी मर्द को लागू होती है उतनी ही स्त्रियों पर भी लागू होती है।
हमने ये भी देखा है की कुछ कानून जो स्त्रियों के हक़ में है उसका गैरउपयोग भी होता है उसके चलते स्त्री के प्रति मर्द कोई भी कानूनी कारवाई करने से कतराते है, या डरते भी है। इस वजह से समाज में बहुत सारे किस्से दब जाते है। महिलाओं द्वारा मर्दों पर लगाए जाने वाले दहेज शारीरिक शोषण और बलात्कार जैसे केसों में २५ प्रतिशत झूठे और बेबुनियाद होते हैं।
सिर्फ़ इसलिए की स्त्री, स्त्री है तो सबकी सहनाभूति की हकदार बनकर बेचारी बन वाहवाही नहीं लूट सकती। स्त्री के सताये उन मर्दों के लिये भी आवाज़ उठनी चाहिए। हनन करना पाप है तो सहना भी पाप है। अगर स्त्री पीड़ित है मर्द के हाथों तो भी आवाज़ उठाएँ और मर्द को भी पूरा हक़ है अपना पक्ष रखकर आवाज़ उठाने का। ये मुद्दा सभ्य समाज की एक स्त्री को शर्मसार करती छवि है। अगर इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया जाएगा तो आगे जाकर अतुल सुभाष जैसे बेगुनाह युवा ऐसी लालची पत्नियों के हाथों बलि चढ़ते रहेंगे।
— भावना ठाकर ‘भावु’