कविता

उड़ान

चलो थोड़ा-थोड़ा , पंख फैलाएं
उड़ पाएं, चाहे, या न उड़ पाएं
प्रयास जारी रखें, न घबड़ाएं
चलो थोड़ा-थोड़ा, पंख फैलाएं।।

कब तक दूसरों, पर, निर्भर रहोगे
अपने पैरों पर खुद, कब खड़े होगे
चुनौतियों से न डरें, कदम बढ़ाएं
चलो थोड़ा-थोड़ा,पंख फैलाएं।।

मेहनत कभी भी, व्यर्थ न जाएगी
एक न एक दिन, गुल खिलाए गी
जरुरी है, खुद में, विश्वास जगाएं
चलो थोड़ा-थोड़ा, पंख फैलाएं।।

उम्मीद पर ही, सब कुछ,टिका है
होगी सुबह फिर,शास्वत लिखा है
फिर क्यों तेरे, कदम लड़खड़ाए
चलो थोड़ा-थोड़ा, पंख फैलाएं।

संभव है, सफलता, हाथ न लगे
निराशा के, बादल, घेरने लगे
विजय निश्चित है, जान मुस्कराएं
चलो थोड़ा-थोड़ा, पंख फैलाएं।।

धीरे-धीरे पंख भी ,खुलने लगेंगे
देखते ही देखते, आप उड़ने लगेंगे
दिल हवा में, कलाबाजियां खाए
चलो थोड़ा-थोड़ा, पंख फैलाएं।।

अभी जो चूके, फिर,उड़ न सकोगे
यूंही समस्या से , कब तक डरोगे
यथार्थ से, कब तक,आंखें चुराएं
चलो थोड़ा-थोड़ा, पंख फैलाएं।।

कौन क्या, कहता है, परवाह छोड़ें
व्यर्थ का, ख़ुद पर, दवाव न ओढ़ें
अपनी खुशियों को,परवान चढ़ाएं
चलो थोड़ा-थोड़ा, पंख फैलाएं।।

मेहनत का कोई, विकल्प नही है
जन-जन का, अब संकल्प यही है
श्रम को अपना, हथियार बनाएं
‌ चलो थोड़ा-थोड़ा,पंख फैलाएं।।

चुनौतियों से, न घबराएं

चलो थोड़ा-थोड़ा, पंख फैलाएं
चलो थोड़ा-थोड़ा, पंख फैलाएं।।

— नवल अग्रवाल

नवल किशोर अग्रवाल

इलाहाबाद बैंक से अवकाश प्राप्त पलावा, मुम्बई

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