मुक्तक/दोहा

मुक्तक

जिस दौर में हिन्द को गुलाम लिखा गया था,
उस दौर का इतिहास वामियों ने लिखा था।
मन्दिरों को तोडकर मस्जिदों की तामीर की,
हिन्द में कहाँ कब इस्लाम का डंका बजा था?

यह देश है भारत, जहाँ हिन्दुत्व पला है,
सदियों से मानवता धर्म फूला फला है।
रज रज में यहाँ की आस्था का सृजन,
केसरिया का मान इसी धरा से चला है।

गुनहगार थे मुल्क के, इतिहास बदल गये,
महाराणा की जीत को, जो हार बदल गये।
भारत के गौरव को जो मुगलों का बताकर,
राष्ट्र के सम्मान को, अपमान में बदल गये।

पढ़ना कभी इतिहास के पन्नों को पलटकर,
वेदों पुराणों उपनिषद स्मृतियों को पलटकर।
सन्तों व ऋषियों ने ही दिशा राष्ट्र को दिखाई,
लुटेरों की किताब आसमानी देखना पलटकर।

राम को नकारते जो राम के देश में,
घूमते फिर रहे यहाँ कंस के भेष में।
रामनामी वस्त्रों पर सवाल उठाने वाले,
नासुर बन रह रहे भारतीय परिवेश में।

आते न थे नजर जो हासिये पर देश में,
कुछ पल गये परजीवी, विगत में देश में।
समाजवाद का चेहरा, गरीबों की दुहाई,
बुद्धीजिवियों का साम्यवाद, इस देश में।

— डॉ. अ. कीर्तिवर्द्धन

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