तलाश
बहुत कुछ जिंदगी में पाया हमने
मन नहीं भरा फिर भी हमेशा रहे उदास
कुछ और पाने की चाहत में भटकते रहे
मिला था वह भूल गए करते रहे कुछ और तलाश
कोई नौकरी के चक्कर में रहा घूमता
नहीं मिली जूते घिस गए हो गया हताश
दिन रात की मेहनत काम नहीं आई
न जाने कब खत्म होगा तेरा यह बनवास
अपने पास जो था वह नज़र नहीं आया
नज़र वहीं टिकी जाकर जो था दूसरों के पास
सब भूल गए जो पड़ा था तुम्हारी झोली में
छोड़ दी फिर भी सब कुछ मिलने की आस
ठोकर जब लगी तब भी नहीं संभले
दूसरों पर निकालते रहे दिल की भड़ास
छोड़ते गए सब जो थे संगी साथी
दूर हो गए सब कोई न रहा पास
जिसको भी देखो सब हैं भटक रहे
सबको है किसी न किसी चीज़ की तलाश
बाहर ढूंढते फिर रहे अंदर कोई नहीं झांकता
अंदर ढूंढोगे तो सब कुछ है तुम्हारे पास
— रवींद्र कुमार शर्मा