भ्रमों का जाला
जनता से उसका रिश्ता खास है,
वह सबको बरगलाने में उस्ताद है,
भले आदत से लाचार है,
पर बहुत ही जिम्मेदार है,
जिम्मेदारी भरपूर निभाता है,
तभी तो पल में ध्यान भटकाता है,
उनके काम का तरीका गुप्त है,
चैतन्यता शायद सुसुप्त है,
मगर वो पूरी तरह आभासी है,
बंदा तपोयुगी सन्यासी है,
चेहरे पर हमेशा चमकता तेज है,
लीजिये चमचों का रिपोर्ट पेश है,
मधुर बोली उसकी पहचान है,
बस दिल कठोर नादान है,
अंदाज उनके निराले है,
जिसका ढिंढोरा पीटने बंदे पाले हैं,
हर गरीब गुरबे से उनका नाता है,
तो धनकुबेरों का साथ सुहाता है,
सारा सिस्टम करीने से संभाला है,
आसपास भ्रमों का भयंकर जाला है,
मकड़ियों द्वारा जाल से छोटे जीवों का
जिस तरह सेवा होता है,
वैसे ही सेवा भाव अपने रग रग में
हमारे तपस्वी जी रात दिन संजोता है।
— राजेन्द्र लाहिरी