नववर्ष
नववर्ष की परिकल्पना
कल्पना ने यूँ उकेर दी
अंतर्मन में छुपी हुई हो
जैसे आकाँक्षा बचपन की
पेड़ों पर हो चहचहाती
पक्षियों की आवाजें
घोल रही हों यूँ फिजा में
संगीत की मीठी धुन कोई
घण्टियों की सुमधुर तान
ढोलक की हल्की थाप
आरती के मीठे मीठे स्वर
ज्यूँ पुकार हो सुबह की बेला की
बदल रहा हो दूर कहीं कुछ
खिल रहा हो सुदूर कुछ
सूरज की पहली किरण
ज्यूँ प्यास हो किसी पथिक की
संतप्त हृदय को दे शुभकामना
थकित मन को शीतलता
नए साल का प्रथम दिन
देता हो जैसे सुख तृप्ति का
— वर्षा वार्ष्णेय