रात की बात
रात की बात अधूरा-सा में अधूरा ख्वाब चलो रात से बातें करते हैं जनाब!शर्द भरी हवाएं हैं दर्द भरे किरदार बहरूपिये का दौर है सच्चाई कम असरदारकाली झूठ की चकाचौंध फिल्टर का कारोबार असलियत पर पर्दा डालेदिखावा ही बस हथियार पाने की जिद में सब अंधेमची है कितनी भागा-दौड़सीधे चलने की सहूलियत पता नहीं है किसी को मोड़हाथों में सबके मोबाइल फोन शब्दों की नहीं जरा सा ज्ञान पैसा पैसा जबान पर रहता करते हैं बस उसी का सम्मान चांद की चांदनी अधूरी अधूरा दिख रहा है आसमान एक सड़क पर बैठा मांगे एक मौज कर घूमे विमान तरह-तरह के किरदार हुए हैं बिल्कुल बदला है इंसान हम लिखने वाले भावनाओं में बहते हैं आओ चलो अब रात को अलविदा कहते हैंप्रवीण माटी