हरियाणा प्रदेश के नाम की व्युत्पत्ति
हरियाणा प्रदेश के नाम की व्युत्पत्ति के संबंध में विविध थ्योरियाँ हैं। हरियाणा एक प्राचीन नाम है। वैदिक युग में इस क्षेत्र को ब्रह्मवर्त, आर्यवर्त और ब्रह्मोपदेश के नाम से जाना जाता था। ये सभी नाम हरियाणा की भूमि पर ब्रह्मा के उपदेशों पर आधारित हैं और इनका सामान्य अर्थ है- ‘आर्यों का आवास और वैदिक संस्कृति और संस्कारों के उपदेशों का क्षेत्र’। कई विद्वान, सीधे ऋग्वेद से इसका संबंध जोड़ते हुए, कहते हैं कि हरियाणा शब्द का तब राजा के विशेषण के रूप में प्रयोग किया जाता था। उनकी मान्यता है कि राजा वासु ने इस क्षेत्र पर लंबे समय तक शासन किया और इसी कारण, इस क्षेत्र को उनके बाद, हरियाणा के नाम से जाना जाने लगा। मगर देश के सुप्रसिद्ध साहित्यकार और शिक्षाविद् डॉ. रामनिवास ‘मानव’ का कहना है कि हरयाणा अथवा हरियाणा शब्द की व्युत्पत्ति हरयान या हरियान शब्दों से नहीं, बल्कि अहिराणा शब्द से हुई है तथा यह मत पूर्णतया तथ्यपरक, तर्कसंगत और प्रामाणिक है। आइये, इस संबंध में विस्तार से जानते हैं उनके तर्क और विचार।
हरियाणा वैदिक कालीन शब्द है। इसका सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है-“ऋजुभुक्षस्याने रजतं हरियाणे। रथं युक्तं असनाम सुषामणि।” (8: 25: 22) यहाँ प्रयुक्त हरियाणे शब्द के कष्टों को सहने वाला, हरणशील, हरि का यान आदि अनेक अर्थ हो सकते हैं, किंतु इससे प्रदेश-विशेष के नाम का स्पष्ट बोध नहीं होता। यह कहना है, सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं शिक्षाविद् डॉ. रामनिवास ‘मानव’ का। उन्होंने स्पष्ट किया कि हरियाणा शब्द की व्युत्पत्ति मुख्यत: हरयान अथवा हरियान शब्द से मानी जाती है। इसीलिए इसे अंग्रेज़ी में हरयाणा तथा हिंदी में हरियाणा लिखा जाता है। किंतु मेरे मतानुसार यह थ्योरी गलत है। हर (शिव) और हरि (विष्णु) के इस क्षेत्र में यान द्वारा विचरण करने का सटीक उल्लेख नहीं मिलता। फिर यान के विचरण करने से किसी क्षेत्र के नामकरण की बात भी गले नहीं उतरती। हरियाणा के नामकरण संबंधी अन्य मतों का उल्लेख करते हुए, उन्होंने कहा कि हरियानक, हरितारण्यक, हरिताणक, आर्यायन, दक्षिणायन, उक्षणायन, हरिधान्यक, हरिबांका आदि शब्दों से हरियाणा की व्युत्पत्ति संबंधी अन्य थ्योरियाँ भी अविश्वसनीय, बल्कि कुछ तो हास्यास्पद लगती हैं। डॉ. बुद्धप्रकाश और प्राणनाथ चोपड़ा ने हरियाणा की व्युत्पत्ति अभिरायण शब्द से मानी है, किंतु इसे भी आंशिक रूप से ही सही माना जा सकता है।
डॉ. ‘मानव’ ने कहा कि मेरी सुचिंतित और सुनिश्चित मान्यता है कि हरियाणा की व्युत्पत्ति अहिराणा शब्द से हुई है। पशुपालन और कृषि का व्यवसाय करने वाले यदुवंशियों को अभिर या आभीर कहा जाता था, कालांतर में, जिसका तद्भव रूप अहीर हो गया। अहीर बहादुर योद्धा माने जाते थे, जिनके अस्तित्व के प्रमाण ईसा से छह हजार वर्ष पूर्व भी मिलते हैं। उन्होंने आगे स्पष्ट किया कि किसी समय अहीर जाति हरियाणा, दिल्ली, बिहार, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान से लेकर गुजरात और महाराष्ट्र तक फैली हुई थी। किंतु वर्तमान हरियाणा, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उसका पूरा आधिपत्य और संपूर्ण वर्चस्व रहा। अहीरों का बाहुल्य होने के कारण ही इस क्षेत्र को अहिराणा कहा जाने लगा। (जैसे राजपूतों के कारण राजपुताना, मराठों के कारण मराठवाड़ा और भीलों के कारण भीलवाड़ा कहा जाता है।) बाद में, हरियाणवी बोली की उदासीन अक्षरों के लोप की प्रकृति के चलते, अखाड़ा-खाड़ा, अहीर-हीर, उतारणा-तारणा, उठाणा-ठाणा और स्थाण-ठाण की तर्ज पर, अहिराणा से हिराणा और फिर हरयाणा या हरियाणा हो गया। अहिराणा शब्द का अर्थ है-‘अहीरों का क्षेत्र’। इसे अहीरवाल का पर्यायवाची माना जा सकता है।
एक अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य का उल्लेख करते हुए डॉ. ‘मानव’ ने कहा कि इससे भी मेरे मत की पुष्टि होती है। आज भी महाराष्ट्र के खानदेश, जिसे कभी हीरदेश भी कहा जाता था और जिसमें महाराष्ट्र के मालेगांव, नंदुरबार और धुले जिलों के अतिरिक्त नासिक जिले के धरनी, कलवण, सटाणा और बागलान तथा औरंगाबाद जिले के देवला क्षेत्र, गुजरात के सूरत और व्यारा तथा मध्यप्रदेश के अंबा और वरला क्षेत्र शामिल हैं, जहाँ आज भी अहिराणी बोली, बोली जाती है। देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली और बीस-बाईस लाख लोगों द्वारा बोली जाने वाली अहिराणी का अर्थ है ‘अहीरों की बोली’। इससे स्पष्ट है कि अहिराणा और अहिराणी में सीधा संबंध और पूरी समानता है।
अंत में, निष्कर्ष प्रस्तुत करते हुए, डॉ. ‘मानव’ ने कहा कि हरयाणा अथवा हरियाणा शब्द की व्युत्पत्ति हरयान या हरियान शब्दों से नहीं, बल्कि अहिराणा शब्द से हुई है तथा यह मत पूर्णतया तथ्यपरक, तर्कसंगत और प्रामाणिक है।
— डॉ. सत्यवान सौरभ