कविता

कौन इन्हें समझाए

चुन कर जिसने भेजा इनको
अपनी समस्याएं हल करवाने को
केवल मुर्गा और समोसे नजर आ रहे
लालायित है फिर से सत्ता पाने को

सत्ता के लालच में देखो
भूल गए आदर्श और मर्यादा
लड़ते रहते जैसे अबोध बालक
किसी को मिलता पूरा हिस्सा और किसी को आधा

किसी के हाथ में जूता चप्पल
कोई चलाता घूंसे और लात
जनसेवक फिर कहते सारे
बदतर हो गए अब हालात

झूठों के सरदार हैं बने
सच को हैं अब झूठ बताते
झूठ बोलने की कसम हैं खाते
जैसे ही हैं जीत के आते

ऊन भेड़ पर किसने छोड़ी
बहती नदिया घर को मोड़ी
भ्रष्टाचार चरम पर पहुंचा
इन्होंने सब मर्यादाएं तोड़ी

सत्ता पक्ष को कानून बनाना
और करना जन हित के काम
सत्ता जब अहंकारी हो जाये
विपक्ष का काम लगाना लगाम

विपक्ष अहंकारी सत्ता अहंकारी
दोनों की समझ में कुछ न आये
देश है पहले निजहित बाद में
यह बात इनको कौन समझाए

जनता है बेचारी भोली
नहीं समझती इनकी चाल
पांच साल बाद फिर आएंगे
लेकर झूठे वायदों का जाल

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र

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