मधुमास सा
प्रेम अमृत रस पान करके,
इश्क चले अब धारण करने।
शीर्षक याद लिख कर गीत,
व्रत एकाकी का पारण करने।
अलंकार से सुसज्जित कर,
स्वयं को स्वयं में लज्जित कर।
इच्छाओं की गांठ बाँधकर चले,
भाव करुण का कारण धरने।
सुनकर धड़कनों की आवाज,
तुम्हारे प्रेम का सुनाती आगाज।
तुम कहीं वही तो नहीं हो प्रेमी,
जो आये हो मुझे तारण करने।
राधा बनाकर ह्दय-पटल में,
कृष्ण तड़पे ब्रह्मांड अटल में।
निशा की दहक दिवस की तरस,
बोलते राधे-राधे उच्चारण करने।
मन करता है श्वास को लिख दूँ,
उभरते हर भाव-प्यास लिख दूँ।
आह निकली नयनों से जब-तब,
आते गम, तन्हाई, मारण करने।
प्रार्थना करती प्राणेश्वर हरीश,
जन्मों का साथी मिला मरीच।
मधुमास सा सौन्दर्य खिला ये,
प्रतिभा का दुख जारण करने।
— प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”