कविता

जैव विविधता

जैवविविधता प्रकृति में, जीवन का आधार।
सकल सृष्टि का मानते, जीव – जन्तु आभार ।

जैवविविधता क्षरण से, सारा जग है दीन।
भारी संकट से घिरे, जल, वन, जन्तु, जमीन।

जैवविविधता श्रंखला, कभी न जाए टूट।
प्रकृति आपदा अन्यथा, दे न किसी को छूट।

जैवविविधता से जुड़ा. पर्यावरण विधान।
जीव – सृष्टि में संतुलन, लाए सुखद विहान।

कीट, सरीसृप, मछलियाँ,खग, मेढक, पशु – वन्य।
जीव – जन्तु,जीवाणु से, लगती प्रकृति अनन्य।

जैवविविधता की कभी, टूट गई यदि डोर।
महामारियाँ आपदा, फैलेंगी घनघोर।

जैवविविधता क्षरण से, ताप वृद्धि का दंश।
पशु, पक्षी, तरु, मनुज का, मिट सकता है वंश।

प्रकृति बचाने हेतु शुभ, जैवविविधता मंत्र।
उससे रहता संतुलित, पारिस्थितिकी तंत्र।

जैवविविधता पर टिका, मानव का अस्तित्व।
संरक्षण हित है उचित, मैत्रीपूर्ण कृतित्व।

जैवविविधता वृद्धि के, कर लें शीघ्र उपाय।
क्रियान्वयन हित हो सजग, कुल वैश्विक समुदाय।

जीव – जन्तुओं के लिए, बने प्राकृतिक वास।
संकटग्रस्त प्रजातियाँ, फिर कर सकें विकास।

भारत – संस्कृति गा रही, जैवविविधता – गान।
सकल सृष्टि में है मिला, सब जीवों को मान।

‘प्रकृति रक्षित रक्षिता ‘, ग्रंथों का आह्वान।
प्रकृति को ईश्वर रूप में, मानें सदा महान।

— गौरीशंकर वैश्य विनम्र

गौरीशंकर वैश्य विनम्र

117 आदिलनगर, विकासनगर लखनऊ 226022 दूरभाष 09956087585

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