इंसान है तो
इंसान है तो इंसान की, ये नियत जरूरी है
बिना इंसानियत के,जिंदगी पुरी अधूरी है
तेरा धर्म नेक और, करम भी तेरा नेक हो
खुदाई पे यक़ीं करले, बस बन्दगी पुरी है।
इंसान धर्म तेरा हो, इसे क्यों भूल जाता है
वहशियाना में तुझे भला,क्या मिल पाता है
अमन-चैन क्यों दिल में ,तू नही दिखाता है
खुदा से डर खुदाई ही, तुझको बचाता है।
ये जहान और आलम, सारा मंजर प्यारा है
यहीं तो जन्नत होता है जहाँ देखो नज़ारा है
नजरिया गर प्यारी हो खुदा का नजराना है
दिल में पाक है तब तो, तराना ही तराना है।
— अशोक पटेल “आशु”