चौपाई
नेता देखो करते खेला।
नीत नियम गटकें गुरु -चेला।।
संविधान की कसमें खाते।
जनता को हैं मूर्ख बनाते।।
जनता को वे मूर्ख बनाते।
मुफ्त पगारें भी हैं पाते ।।
काश! नियम ऐसा बन जाये।
नेताओं का हक छिन जाए।।
पास परीक्षा हो जब आयें ।
संसद में तब जाने पाएं।।
शपथ पत्र दें, तब पद पाएं।
घर जाकर हुड़दंग मचाएं।।
सदन अखाड़ा बनता जाता ।
जनता को ये कब है भाता।।
जनता आखिर क्यों है चुनती ।
ताना बाना क्या है बुनती ।।
बिजली चोरी जमकर करते।
नहीं किसी से नेता डरते।।
सत्य सनातन की महिमा है।
हनुमत भोले की गरिमा है।।
बड़े शाँति से मौन खड़े थे।
सच खुद बोले अड़े खड़े थे।।
फिर जब सच ने ली अंगड़ाई।
भोले हनुमत पड़े दिखाई।।
चालू झटपट साफ सफाई।
भौचक्के थे उल्लू भाई।।
पूजन हवन शुरू हो पाया।
उड़ा झूठ का सारा सचलो सैर हम सब कर आयें।
शुद्ध हवा हम सब पा जायें।।
स्वस्थ कुशल ये होगा जीवन ।
धर्म सनातन माने मन।।